- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 681
=हाईकू=
विद्या सागर सरीखे ,
कहाँ और सागर मीठे ।।स्थापना।।
अर !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, दृग्-जल गागर ।।जलं।।
निरे !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, चन्दन घडे़ ।।चन्दनं।।
पूज !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, धाँ शाली दूज ।।अक्षतं।।
अन !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, चुन सुमन ।।पुष्पं।।
त्रात !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, चरु परात ।।नैवेद्यं।।
न्यार !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, दीप कतार ।।दीपं।।
नूप !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, सुगंध धूप ।।धूपं।।
न्यारे !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, फल पिटारे ।।फलं।।
एक !
आपके श्री चरणों में,
भेंटूँ, दरब नेक ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
श्री-गुरु,
सब कुछ देख सकते, ‘पर’ न आँसु
जयमाला
महिमा साधुजन न्यारी ।
भीतर ज्ञान भण्डारी ।।
जोवन चल पड़े वन ओर ।
खनखन नेह तज, घर छोड़ ।।
तन मल पटल श्रृंगारी ।
भीतर ज्ञान भण्डारी ।
महिमा साधुजन न्यारी ।।१।।
पूरे हुये नहिं दो मास ।
लुंचन आ चला फिर रास ।।
परिषह जय, निरतिचारी ।
तन मल पटल श्रृंगारी ।
भीतर ज्ञान भण्डारी ।
महिमा साधुजन न्यारी ।।२।।
निवसे गुफा कोटर शून ।
दें कम, काम लें तन दून ।।
शिव तिय ब्याह तैयारी ।
परिषह जय, निरतिचारी ।
तन मल पटल श्रृंगारी ।
भीतर ज्ञान भण्डारी ।
महिमा साधुजन न्यारी ।।३।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
दे दीये,
बना बिगड़े काम,
तुम्हें लाखों प्रणाम
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