- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 674
=हाईकू=
छोड़ सागर विद्या,
और सागर हैं खारे पता ।।स्थापना।।
दृग् जल करूँ अर्पण,
‘कि पखार पाऊँ चरण ।।जलं।।
चन्दन करूँ अर्पण,
‘कि निखार पाऊँ ऽऽचरण ।।चन्दनं।।
अक्षत करूँ अर्पण,
‘कि उजाल पाऊँ ऽऽचरण ।।अक्षतं।।
सुमन करूँ अर्पण,
‘कि संभाल पाऊँ ऽऽचरण ।।पुष्पं।।
पकवाँ करूँ अर्पण,
‘कि संवार पाऊँ ऽऽचरण ।।नैवेद्यं।।
दीपिका करूँ अर्पण,
‘कि प्रक्षाल पाऊँ चरण ।।दीपं।।
सुगंध करूँ अर्पण,
‘कि सुधार पाऊँ ऽऽचरण ।।धूपं।।
श्री फल करूँ अर्पण,
‘कि उतार पाऊँ ऽऽचरण ।।फलं।।
अरघ करूँ अर्पण,
‘कि निहार पाऊँ चरण ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
इन्दु हैं शीत-लता,
पै विद्या सिन्धु दें शीतलता
जयमाला
दुआ ये तेरी
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
तुम जिससे बोल लेते हो
उसे कर अनमोल देते हो
न मैं ही,
दुनिया भी कह रही
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
दुआ ये तेरी
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
तुम जर्रा सा मुस्कुरा
लेते हो किसका न दिल चुरा
धारा दरिया भी कह रही
न मैं ही,
दुनिया भी कह रही
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
दुआ ये तेरी
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
उठा के तुम अपनी नजर
ले लेते हो गम, गैरों के अपने सर पर
बाती दीया भी कह रही
धारा दरिया भी कह रही
न मैं ही,
दुनिया भी कह रही
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
दुआ ये तेरी
भरी जादूगरी
जुबाँ ये तेरी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
अजनबी था,
जो लगा पीछि-पीछे लिया,
शुक्रिया
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