- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 669
हाईकू
गुरु देवता,
‘पानी’ थारी पनाह,
दो बता राह ।।स्थापना।।
धार की,
‘पानी’
मथता न रहूँ ‘कि इस बार भी ।।जलं।।
गंध चढ़ाऊॅं,
‘चन्दन’ राख हित ‘कि न जलाऊँ ।।चन्दनं।।
धां भेंटी,
‘साल’ न ले लील काल ‘कि फिर के यूँ ही ।।अक्षतं।।
पद्म चढ़ाऊँ,
‘पुष्प’ खम् ‘कि चुनता न रह जाऊँ ।।पुष्पं।।
षट्रस भेंटूॅं,
‘व्यंजन’ स्वर रटूॅं न भाँति मिट्टू ।।नैवेद्यं।।
लौं बालूॅं,
‘दीप’
तले ‘कि अबकी न अंधेरा पालू।।दीपं।।
सुगंध छोडूॅं,
‘कस्तूरी’ हेत ‘कि न मृग सा दौडू।।धूपं।।
भेला चढ़ाऊँ,
‘ना’रियल न रहूँ ‘गिरी’ कहाऊँ ।।फलं।।
अर्घ चढ़ाऊँ,
अनर्घ्य पदवी भू आठवीं पाऊँ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
चलती बने
‘गुरु मति’
बेचश्मे देख गलती
जयमाला
कभी किसी को दिया न धोखा तुमनें
कभी किसी को रोका न टोका तुमनें
कोई इसमें करिश्मा नहीं
लगता की तुम्हें चश्मा नहीं
ऐसे न वैसे हो, सच, तुम अपने ही जैसे हो
गुरुकुल के पल,
जो कहो, कैसे तो
फूल जैसे कंवल
गुजरे गुरुकुल के पल
ऐसे न वैसे हो
स्वपर हित निकले घर से हो
तुम अपने ही जैसे हो
गुरुकुल के पल,
जो कहो, और कैसे तो
स्वाती नक्षत्र जल
फूल जैसे कंवल
गुजरे गुरुकुल के पल
ऐसे न वैसे हो
स्वपर हित निकले घर से हो
तुम अपने ही जैसे हो
गुरुकुल के पल,
जो कहो, और कैसे तो
नेत्र मां के सजल
स्वाती नक्षत्र जल
फूल जैसे कंवल
गुजरे गुरुकुल के पल
ऐसे न वैसे हो
स्वपर हित निकले घर से हो
तुम अपने ही जैसे हो
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
यही कहना,
सिर-पे मेरे हाथ रक्खे रहना
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