- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 662
हाईकू
आईजो मेरे भगवन्
पधारिजो मंदिर-मन ।।स्थापना।।
दे दीजे दुआ संबल,
सागर पा जाये ‘कि जल ।।जलं।।
लीजे बोल दो बोल,
हो अमोल
‘कि चन्दन घोल ।।चन्दनं।।
दे दीजे एक मुस्कान,
हों निहाल ‘कि शालि-धान ।।अक्षतं।।
ले लीजे आप शरण,
नाम सार्थ-पाये सुमन ।।पुष्पं।।
दे दीजे पाँव-रज,
छाये सुर्ख़िंयों में ‘कि नेवज ।।नैवेद्यं।।
दे दीजें एक झलक,
हो दीपक और बनक ।।दीपं।।
डाल दो एक नजर,
जाये तर, धूप-इतर ।।धूपं।।
अपना चेला लीजे बना,
भेला ‘कि छुये गगना ।।फलं।।
बढ़ा लो डग इसी ओर,
अरघ हो शिर-मौर ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
हाथ आप क्या सिर हुआ रखना,
छू विलखना
जयमाला
सभी पर बरस रही है,
तेरी रहमत
जाने क्यों तरस रही है,
मेरी किस्मत
हैं सुनते, आप हैं दरिया से,
हैं सुनते आप, हूबहू दिया से,
आप और वह
हैं कर देते बेवजह
जिस किसी की भी पूरी जरूरत
जाने क्यों तरस रही है,
मेरी किस्मत
सभी पर बरस रही है,
तेरी रहमत
जाने क्यों तरस रही है,
मेरी किस्मत
हैं सुनते, आप हैं बादल से
हैं सुनते आप, माँ आँचल से
आप और वह
हैं कर देते बेवजह
जिस किसी की भी पूरी जरूरत
जाने क्यों तरस रही है,
मेरी किस्मत
सभी पर बरस रही है,
तेरी रहमत
जाने क्यों तरस रही है,
मेरी किस्मत
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
लो भले डाँट,
पै न करना बन्द करना बात
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