- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 659
हाईकू
त्राहि माम्
करे नाक में दम म्हारी,
ये धारी-मारी ।।स्थापना।।
भौ-सिन्धु तीर पाने,
आये,
उदक लाये चढ़ाने ।।जलं।।
गवाने न्याय-काने,
आये,
चन्दन लाये चढ़ाने ।।चन्दनं।।
जमाने ताने-बाने,
आये,
अक्षत लाये चढ़ाने ।।अक्षतं।।
अत्त पे अत्त ढ़ाने,
आये,
पहुप लाये चढ़ाने ।।पुष्पं।।
‘औ’ न चुगली खाने,
आये,
व्यञ्जन लाये चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।
राज हंसों में आने,
आये,
दीपिका लाये चढ़ाने ।।दीपं।।
तराने आत्म-गाने,
आये,
सुगन्ध लाये चढ़ाने ।।धूपं।।
सारे जहाँ में छाने,
आये,
श्रीफल लाये चढ़ाने ।।फलं।।
जी खुल्लापन लाने,
आये,
अरघ लाये चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
आप लें ही न रस छीटा-कसी,
हो क्यों-कर हँसी
जयमाला
अविराम,
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
सुबहो शाम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
अविराम
था पराया,
जो अपनाया,
और थमाया मुकाम,
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
सुबहो शाम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
अविराम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
था अकेला
घना अंधेरा
लिया हाथ मेरा जो थाम,
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
सुबहो शाम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
अविराम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
था नौसीखा
निज सरीखा
जो किया नीका, अभिराम,
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
सुबहो शाम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
अविराम
गुरुवर तुम्हें प्रणाम,
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
यही कहना
थामी अंगुली, थामे यूँ ही रहना
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