- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 651
हाईकू
है ही क्या ‘किया-धरा’ मेरा,
‘दीया’ भी ये दिया तेरा ।।स्थापना।।
हेरा-फेरी जो,
वो विहँसाने आये,
दृग्-जल लाये ।।जलं।।
थारी-मारी जो,
वो विनशाने आये,
चन्दन लाये ।।चन्दनं।।
छीटा-कसी जो,
वो भुलाने आये,
धाँ-अक्षत लाये ।।अक्षतं।।
ताँका-झाँकी जो,
वो विसराने आये,
सुमन लाये ।।पुष्पं।।
तू-तू मैं-मैं जो,
वो मिटाने आये,
घी व्यञ्जन लाये ।।नैवेद्यं।।
टोका-टाँकी जो,
वो सिराने आये,
दीपिका लाये ।।दीपं।।
काना-फूँसी जो,
वो विखराने आये,
सुगंध लाये ।।धूपं।।
जोड़-तोड़ जो,
वो विथलाने आये,
श्री फल लाये ।।फलं।।
आपा-धापी जो,
वो विघटाने आये,
द्यु-अर्घ लाये ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
प्रभु ने, गुरु को बनाया,
शीशे में जो रूप-पाया
जयमाला
धूम मची सदलगा ग्राम-गलियों में उड़े गुलाल
जाया माँ श्रीमति ने लाल ।
‘कि घर मल्लप्पा हुआ निहाल ।।
धूम मची सदलगा ग्राम-गलियों में उड़े गुलाल
‘कि जिसके
गोल गुलाबी सुन्दर-सुन्दर गाल ।
चिकने, श्याह घने, घुँघराले बाल ।।
उल्लेखित श्रुत-सामुदिक जैसा,
है बिल्कुल वैसा ही उन्नत भाल ।।
‘कि घर मल्लप्पा हुआ निहाल ।
जाया माँ श्रीमति ने लाल ।
‘कि घर मल्लप्पा हुआ निहाल ।।
धूम मची सदलगा ग्राम-गलियों में उड़े गुलाल
‘कि जिसके
मद-मृग विगलित सुन्दर नेत्र विशाल ।
कटि प्रदेश करता सिंह को बेहाल ।।
लक्षण-शास्त्रों में वर्णित जैसीं,
पगतलियाँ कर-तलियाँ वैसीं लाल ।
‘कि घर मल्लप्पा हुआ निहाल ।
जाया माँ श्रीमति ने लाल ।
‘कि घर मल्लप्पा हुआ निहाल ।।
धूम मची सदलगा ग्राम-गलियों में उड़े गुलाल
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
काबिल बना दें विश्वास के,
गुरु जी तराश के
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