- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 622
हाईकू
गलें शिकवे गिले,
आप दर्शन से सुकूँ मिले ।।स्थापना।।
निरख सकूँ, अन्तस् तस्वीर,
भेंटूँ नैनन नीर ।।जलं।।
कर सकूँ ‘गो-चरी’ अभिनन्दन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
हो सकूँ अन्त-अन्त-तक विरत,
भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।
हो सकूँ, ‘पाय’ हवा बेत सा दून,
भेंटूँ प्रसून ।।पुष्पं।।
विथला सकूँ, ‘आप’ घरौंदा रेत,
भेंटूँ नैवेद ।।नैवेद्यं।।
आ सकूँ और अपने ही करीब,
भेंटूँ प्रदीव ।।दीपं।।
छ्क ले सकूँ स्वाद सहजानंद,
भेंटूँ सुगंध ।।धूपं।।
संभाल सकूँ आज अपना-कल,
भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।
उतार सकूँ जमीन पे सुरग,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
तिन्हें नमन म्हारा,
जे भेंटें ‘बिन-भेंट’ किनारा
जयमाला
कुछ करो,
‘जि गुरु जी
कुछ करो
मुँदे ही नेन मिरे, देख पावें तुम्हें
कुछ करो,
‘कि गुरु जी
कुछ करो,
खुले भी नैन मिरे, देख पावें तुम्हें
कुछ करो,
‘जि गुरु जी
कुछ करो,
अभी, सुदूर से ही, देख पावें तुम्हें
कुछ करो,
‘कि गुरु जी
कुछ करो,
कभी, अदूर से भी, देख पावें तुम्हें
कुछ करो,
‘जि गुरु जी
कुछ करो,
दृग् डब-डब ‘कि, देख पावें तुम्हें,
कुछ करो,
‘कि गुरुजी
कुछ करो,
यूँ ही पल अब-तब भी, देख पायें तुम्हें,
कुछ करो,
‘जि गुरु जी
कुछ करो,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
दे दिखाई न,
हो कालिख कहीं तो, बन आईना
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