- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 614
=हाईकू=
कीजे निहाल घर,
गुरु जी डाल इक नजर ।।स्थापना।।
भेंटते जल,
भेंट दीजे गुरु जी, संयम पल ।।जलं।।
भेंटते गंध,
भेंट दीजे गुरु जी, ‘धी-भी’ सुगंध ।।चन्दनं।।
भेंटते सुधाँ,
भेंट दीजे गुरु जी, कच्छपी विधा ।।अक्षतं।।
भेंटते फूल,
भेंट दीजे गुरु जी, तुम्बी सा कूल ।।पुष्पं।।
भेंटते चरु,
भेंट दीजे गुरु जी, समता-तरु ।।नैवेद्यं।।
भेंटते दिया,
भेंट दीजे गुरु जी, बेत सी धिया ।।दीपं।।
भेंटते धूप,
भेंट दीजे गुरु जी, सिंह स्वरूप ।।धूपं।।
भेंटते फल,
भेंट दीजे गुरु जी, आप सा कल ।।फलं।।
भेंटते अर्घ,
भेंट दीजे गुरु जी, द्यु-अपवर्ग ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
करे ही न ‘जी’
गुरु जी,
लेवें देख,
‘कि मीन-मेख
जयमाला
जाना है उस पार
मुझे भी
नाव में अपनी
गुरु जी कर लो ‘ना’ सवार
छाँव में अपनी
रख लो ‘ना’ इक बार
‘प्लीज’ गुरु जी
लाज रख लो ‘ना’ इस बार
आता है रोना मुझे
दुनिया ने समझा खिलौना मुझे
रहा एक तुझपे ही अब ऐतबार
मुझे भी जाना है उस पार
छुपा के धोखा-मुझे
दुनिया ने दिया है तोहफा मुझे
रहा एक तुझपे ही अब ऐतबार
नाव में अपनी
गुरु जी कर लो ‘ना’ सवार
काम निकला, कहके अलविदा
दुनिया ने साधा है स्वारथ सदा
रहा एक तुझपे ही अब ऐतबार
जाना है उस पार
मुझे भी
नाव में अपनी
गुरु जी कर लो ‘ना’ सवार
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
गुरु जी,
आ, ले तो लो खबर,
मन ढाये कहर
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