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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 613

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 613

-हाईकू-
हुये धन्य पा आप दरश,
दृग् थे गये तरस ।।स्थापना।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ जल गागर ।।जलं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ गंध-गागर ।।चन्दनं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ धाँ-मुक्ताफल ।।अक्षतं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ फुलवा-हर ।।पुष्पं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ पकवाँ-अर ।।नैवेद्यं।।

होने आप-सा विद्या-सागर,
भेंटूँ घी दिया भर ।।दीपं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ धूप सादर ।।धूपं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ फल पातर ।।फलं।।

होने आप सा विद्या-सागर,
भेंटूँ अर्घ लाकर ।।अर्घ्यं।।

-हाईकू-
छीनना खुशी,
गुरु जी को आये ही न
‘छींटा-कसी ‘

जयमाला
‘जि गुरु जी बीती एक उमर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।

ऐसा नहीं ‘जि आपसे कुछ रहता दूर मैं ।
इतना भले ‘कि आप न पहचानते हमें ।
है मंदिर के बगल का ही मेरा घर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।

‘जि गुरु जी बीती एक उमर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।

ऐसा नहीं ‘जि पा रहा न आप का दर्शन ।
इतना भले ‘कि पा रहा न आप निर्देशन ।
भूल से ही ले कभी लो मेरी खबर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।

‘जि गुरु जी बीती एक उमर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।

ऐसा न चकोर सा पीछे तेरे दौड़ा नहीं ।
इतना भले ‘कि फिरूँ पीटते डिंडोरा नहीं ।
खुशी के आँसुओं से कर दो अखिंयाँ मेरी तर ।
इस गरीब पे न पड़ी आपकी नजर

‘जि गुरु जी बीती एक उमर ।
इस ग़रीब पे न पड़ी आपकी नजर ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

-हाईकू-
दिखा दीजिये राह,
हुआ मनुआ बेपरवाह

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