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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 608

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 608

=हाईकू=
दिखाये भाग भाग,
‘जी’
बाग बाग कीजे गुरु जी ।।स्थापना।।

दृग्-जल चढ़ा रहा ‘मैं’,
जल,
बना दो मोति हमें ।।जलं।।

चन्दन चढ़ा रहा ‘मैं’,
बाँस,
बना दो वंशी हमें ।।चन्दनं।।

धाँ चढ़ा रहा ‘मैं’,
कपास,
बना दो कपड़ा हमें ।।अक्षतं।।

सुमन चढ़ा रहा ‘मैं’,
धूल,
बना दो फूल हमें ।।पुष्पं।।

नैवेद्य चढ़ा रहा ‘मैं’,
काँच,
बना दो शीशा हमें ।।नैवेद्यं।।

दीपक चढ़ा रहा ‘मैं’,
शिल,
बना दो शिव हमें ।।दीपं।।

सुगंध चढ़ा रहा ‘मैं’,
धूप,
बना दो छाँव हमें ।।धूपं।।

श्री फल चढ़ा रहा ‘मैं’,
बीज,
बना दो फल हमें ।।फलं।।

अर्घ्य चढ़ा रहा ‘मैं’,
माटी बना दो घड़ा हमें ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
अजूबा,
छोटी-सी आँखों में,
‘गुरु’ हो के भी गये आ

जयमाला

बरसाई,
‘जि गुरुराई,
आपने क्या ज्ञान-धारा
हमारा, चमका भाग सितारा

डरा डरा-सा, था सहमा-सहमा
आसमाँ छू रहा हूँ, है तेरा करिश्मा
लो दीखने ही लगा, वो किनारा
हमारा, चमका भाग सितारा

जारी था हा ! रह-रह के सिसकना
काई पर न हो रहा, अब फिसलना
जो मिल गया, आपका सहारा ।
हमारा, चमका भाग सितारा

गुम-सुम सा था, था खामोश मैं
साँझ-साँझ लो, आ गया होश में
पा गया सिर पे हाथ, जो तुम्हारा
हमारा, चमका भाग सितारा

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
मचाये मन तबाही,
खुद-सा ही, कीजे सद्-राही

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