- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 584
*हाईकू*
न कुटिया ही,
कर धन्य दो कभी,
ये दुखिया भी।।स्थापना।।
जल्दी-जल्दी में, भूले जल,
स्वीकारो नैन सजल ।।जलं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले गन्ध,
स्वीकारो सेवा-नुबन्ध ।।चन्दनं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले धाँ,
स्वीकारो सु-मरण संध्या ।।अक्षतं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले प्रसूँ,
स्वीकारो जन्नते-सुकूँ ।।पुष्पं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले चरु,
स्वीकारो सुकृत खुश्बू ।।नैवेद्यं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले दीया,
स्वीकारो मराल-हिया ।।दीपं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले धूप,
स्वीकारो भीतर डूब ।।धूपं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले फल,
स्वीकारो स्वर्णिम कल ।।फलं।।
जल्दी-जल्दी में, भूले अर्घ,
स्वीकारो चाह-पवर्ग ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
मिलें उठाते क्लेशा,
और काज श्री गुरु हमेशा
।।जयमाला।।
भरे सिसकियाँ,
आपका जिया,
त्राहि माम्
मेरे राम !
हा ! कितनी दुखी ये दुनिया ।
भरे सिसकिंयाँ, आपका जिया ।।
कैसे क्या करूँ, जो लूँ बचा ।
हाय ! राम कोहराम सा मचा ।।
देखो हो न पा रही सुबह
बेजुवान कट चले वेवजह
त्राहि माम् ! कोहराम हा ! मचा ।
कैसे क्या करूँ, जो लूँ बचा ।।
देखो थी भूमि न पाई छू ।
पी गई नागिने माई खूँ ।।
त्राहि माम् ! कोहराम हा ! मचा ।
कैसे क्या करूँ, जो लूँ बचा ।।
देखो जानते न अभी तैरना ।
और नशे में डूबने चले जबां ।।
त्राहि माम् ! कोहराम हा ! मचा ।
कैसे क्या करूँ, जो लूँ बचा ।।
भरे सिसकिंयाँ,
आपका जिया
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
‘जी’ नेक उठे जल,
अचल
‘दीया’
गुरु जी चल
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