- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 574
-हाईकू-
ऊँचे लोगों में देते बिठा,
‘गुरु जी’ जमीं से उठा ।।स्थापना।।
‘दृग्-पानी’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ उदक आँख ।।जलं।।
‘चन्द… न’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ चन्दन पात्र ।।चन्दनं।।
‘चा…बल’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ अक्षत नाथ ।।अक्षतं।।
‘वास…ना’ कहे क्या,
कि हो ज्ञात,
भेंटूँ पुष्प द्यु-ख्यात ।।पुष्पं।।
कहे क्या, ‘दवा…खा…ना’,
भेंटूँ चरु दृग्-भात ।।नैवेद्यं।।
दी…पाली’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ प्रदीप पाँत ।।दीपं।।
‘इ…तर’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ गंध दो आठ ।।धूपं।।
‘ना…रियल’ क्या कहे,
हो ज्ञात,
भेंटूँ श्रीफल हाथ ।।फलं।।
‘द-रब’ कहे क्या,
‘कि हो ज्ञात,
भेंटूँ अर्घ परात ।।अर्घ्यं।।
-हाईकू-
आ बैठें गुरु समीप पल,
छूने अन्छुये हल
।। जयमाला।।
नामे औगुन थी जिन्दगी
आ तुमने की रोशनी
था घना अंधेरा,
तुमने अपना के, किया सबेरा
आयुर्वेद जय आयुर्वेद
न जाये चुग चिड़िया खेत
‘के हो जायें पहले सचेत
आयुर्वेद जय आयुर्वेद
पुड़िया जादू
है और क्या पूर्णायु
जो न देख पाये आँखों में आँसू
है वही तो पूर्णायु
छाया तेरा मेरा
चेहरे ऊपर चेहरा
था घना अंधेरा,
तुमने अपना के, किया सबेरा
है आरजू
पूर्णायु
चार-सू
बरसे सुकूँ
रोग दृग् तरेरा
अपमृत्यु घेरा
छाया तेरा मेरा
चेहरे ऊपर चेहरा
था घना अंधेरा,
तुमने अपना के, किया सबेरा
चार-सू
बरसे सुकूँ
है आरजू
पूर्णायु
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुःख भाव भवेत
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
-हाईकू-
बात निराली,
श्री श्री सद्-गुरु पास,
रोज दीवाली
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