- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 554
=हाईकू=
ज्यों होते जाते, ‘गुरु जी’
‘पास’
होती जाती एनर्जी ।।स्थापना।।
जल चढ़ाऊँ,
तेरी कृपा यूँ ही ‘कि आगे भी पाऊँ ।।जलं।।
तेरी कृपा ‘कि पाने का हुआ मन,
लाया चन्दन ।। चन्दनं।।
लाया धाँ शालि अक्षत दाने,
तेरी किरपा पाने ।।अक्षतं।।
तेरी किरपा ‘कि बरष जाये,
आये,
ये पुष्प लाये ।।पुष्पं।।
लाया व्यंजन घी,
तेरी कृपा बनी रहे ‘कि यूँ ही ।।नैवेद्यं।।
तेरी कृपा यूँ ही बरषे सदीव,
‘कि भेदूँ दीव ।।दीपं।।
न यूँ ही मैं खे रहा हूँ धूप,
तेरी कृपा अनूप ।।धूपं।।
तेरी कृपा ‘कि जाये बरष,
लाये फल सरस ।।फलं।।
अर्घ लाया,
‘कि तेरी-कृपा बरसे, विहँसे माया ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
आओगे किस पल ?
गुरु बोले ‘न रहते कल’
।।जयमाला।।
गुरु द्वार से सवाली
तलक अभी
न लौटा कभी झोली खाली
साँस दी राहत वाली
सुहानी
वो पुरानी
साँस दी भारत वाली
पश्चिमी हवा ने
थी छीनी जो इंडिया ने
सुहानी
वो पुरानी,
साँस दी भारत वाली
पूर्णायु होली दीवाली
बेवजह चाहत वाली
सुहानी
वो पुरानी,
साँस दी भारत वाली
थी कभी गाँवों में
जो बुजुर्गों की छाँवों में
सुहानी
वो पुरानी
साँस दी भारत वाली
गुरु कृपा निराली
पूर्णायु होली दीवाली
बेवजह चाहत वाली
सुहानी,
वो पुरानी
साँस दी भारत वाली
गुरु द्वार से सवाली
तलक अभी
न लौटा कभी झोली खाली
साँस दी राहत वाली
सुहानी
वो पुरानी
साँस दी भारत वाली
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘भिजाने आती’ तलक-दूर,
तर,
गुरु ‘नजर’
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