- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 542
*हाईकू*
तुम्हें देखते ही,
‘दुःख-दर्द’ मुड़ देखते नहीं ।।स्थापना ।।
खो जाये गुस्सा,
भेंटूँ जल, लो बना मुझे खुद-सा ।।जलं।।
खो जाये ईर्ष्या,
भेंटूँ गंध, लो बना मुझे खुद-सा ।।चन्दनं।।
खो जाये लिप्सा,
भेंटूँ धान, लो बना मुझे खुद-सा ।।अक्षतं।।
खो जाये नशा,
भेंटूँ पुष्प, लो बना मुझे खुद-सा।। पुष्पं।।
खो जाये क्षुधा,
भेंटूँ भोग, लो बना मुझे खुद सा ।।नैवेद्यं।।
खो जाये निशा,
भेंटूँ दीप, लो बना मुझे खुद-सा ।।दीपं।।
खो जाये तृषा,
भेंटूँ धूप, लो बना मुझे खुद-सा ।।धूपं।।
गहल शशा,
भेंटूँ फल, लो बना मुझे खुद-सा ।।फलं।।
छाँव निवसा,
भेंटूँ अर्घ, लो बना मुझे खुद-सा ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
यू-टर्न ही न दें-बता
गुरु सँग हो लेते ‘पता’
।।जयमाला।।
मेरे दिल में समाई है
तस्वीर तेरी
तकदीर मेरी
तुमने बनाई है
जरा सा मुस्कुरा के
मुझे अपना बना के
इक अजनबी को अपना के
तुमने खोई निधी भिंटाई है
यूँ ही न आँख भर आई है
मेरे दिल में समाई हैं
तस्वीर तेरी
तकदीर मेरी
तुमने बनाई है
नजरें अपनी उठा के
जरा सा मुस्करा के,
मुझे अपना बना के
इक अजनबी को अपना के
तुमने जाती सी लों जगाई है
यूँ ही न आँख भर आई है
मेरे दिल में समाई हैं
तस्वीर तेरी
तकदीर मेरी
तुमने बनाई है
अपनी छाँव में बिठा के
नजरें अपनी उठा के
जरा सा मुस्करा के
मुझे अपना बना के
इक अजनबी को अपना के
तुमने भव भव तपन मिटाई है
यूँ ही न आँख भर आई है
मेरे दिल में समाई हैं
तस्वीर तेरी
तकदीर मेरी
तुमने बनाई है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
मिलता रहे आशीर्वाद,
तेरा यूँ ही दिन-रात
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