- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 541
=हाईकू=
झरते आँखों से बोल,
रिश्ता गुरु शिष्य अमोल।। स्थापना।।
नीर चढाते
भगवन् त्राहि माम्,
भौ-तीर छकाते ।।जलं।।
गंध चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
ये बंध सताते ।।चन्दनं।।
धान चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
दुर्-ध्यान हराते ।।अक्षतं।।
फूल चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
‘भै’ शूल चुभाते ।।पुष्पं।।
भोग चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
सं-योग रिझाते ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
हा ! सीप में आते ।।दीपं।।
धूप चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
वि-द्रूप कहाते ।।धूपं।।
फल्ल चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
त्रि-शल्य रुलाते ।।फलं।।
अर्घ चढ़ाते,
भगवन् त्राहि माम्,
त्रि-वर्ग भ्रमाते ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु ने ज्यों ही खींचे कान,
आया त्यों ही खींसे ज्ञान
।। जयमाला।।
गुरुदेव सा
नेक दिन इंसा
खोजा न पाया है
सैर करके जमीं की
और है लाज़मी भी
चाँद का सबसे सुन्दर चेहरा
पर दाग-धब्बा भी कुछ कम न गहरा
गुरुदेव में कहीं
वो दाग-धब्बा भी
खोजा न पाया है
गुरुदेव सा
नेक दिन इंसा
खोजा न पाया है
सैर करके जमीं की
और है लाज़मी भी
महके चार-सू
चन्दन की खुशबू
पर चखने न कदम बढ़ा,
है बड़ा कड़वा
गुरुदेव में कहीं
वो कटुपन भी
खोजा न पाया है
गुरुदेव सा
नेक दिन इंसा
खोजा न पाया है
महके बेहिसाब
खूबसूरत गुलाब
पर छूने क्या बढ़े,
पहरे कांटे खड़े
न आसपास ही
कहीं दूर दूर भी
गुरु के न काली छाया है ।
गुरुदेव सा
नेक दिन इंसा
खोजा न पाया है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
पा धड़कनें जाती संगीत,
कर गुरु से प्रीत
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