- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 540
=हाईकू=
पा गया मैं,
दो दुनिया की दौलत, पा द्वार तुम्हें ।। स्थापना।।
सागर क्षीर,
स्वीकार नीर,
लगा दो नैय्या तीर ।।जलं।।
अर सुगंध,
स्वीकार गंध,
झिरा दो कर्म बंध ।।चन्दनं।।
शाली प्रधान,
स्वीकार धान,
भिंटा दो स्वाभिमान ।।अक्षतं।।
दिव्य अमूल,
स्वीकार फूल,
थमा दो पाद-मूल ।।पुष्पं।।
षट् रस योग,
स्वीकार भोग,
मिटा दो क्षुधा रोग ।।नैवेद्यं।।
ज्योत सदीव
स्वीकार दीव,
जगा दो ‘कि नसीब ।।दीपं।।
अर अनूप,
स्वीकार धूप,
भिंटा दो चित् स्वरूप ।।धूपं।।
नैन सजल,
स्वीकार फल
बना लो अविचल ।।फलं।।
संप्रद स्वर्ग,
स्वीकार अर्घ,
दिखा दो अपवर्ग ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
मौसम-हर,
फरने वाले तरु-से ‘गुरुवर’
।। जयमाला।।
जीवन मेरा सँवारा
किसी ने थमाया किनारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
उठाये सिर भार मैं
था हाय ! मँझधार मैं
अपना कह के पुकारा
किसी ने दिया था सहारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
जीवन मेरा सँवारा
किसी ने थमाया किनारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
आँखें निर्झर थी बनी
वनी बीहड़ थी घनी
अपना कह के पुकारा
किसी ने दिया था सहारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
जीवन मेरा सँवारा
किसी ने थमाया किनारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
मन लौटने का बना लिया
जबाब था पैरों ने दिया
आँखें निर्झर थी बनी
वनी बीहड़ थी घनी
अपना कह के पुकारा
किसी ने दिया था सहारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
जीवन मेरा सँवारा
किसी ने थमाया किनारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
उठाये सिर भार मैं
था हाय ! मँझधार मैं
अपना कह के पुकारा
किसी ने दिया था सहारा
तो वो तुम हो
तो वो तुम हो
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
मिला जो रब से दिया,
मुझे तूने सब दे दिया
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