- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 536
=हाईकू=
वर्षा दया की,
करते गुरु जी न रखते बाकी ।।स्थापना।।
रुचि पापों की करने फीकी,
भेंटूँ झारी पानी की ।।जलं।।
रुचि गंधों की करने फीकी,
भेंटूँ झारी गंधी की ।।चन्दनं।।
रुचि रसों की करने फीकी,
भेंटूँ शाली धाँ नीकी ।।अक्षतं।।
रुचि स्पर्शों करने फीकी,
भेंटूँ पुष्प द्यु दीखी ।।पुष्पं।।
रुचि भोगों की करने फीकी,
भेंटूँ चरु मिश्री की ।।नैवेद्यं।।
रुचि रंगों की करने कीफी,
भेंटूँ दीपाली घी की ।।दीपं।।
रुचि पैसों की करने फीकी,
भेंटूँ द्यु सुगंधी ही ।।धूपं।।
रुचि रिश्तों की करने फीकी,
भेंटूँ फल मिश्री ही ।।फलं।।
रुचि लाठी की करने फीकी,
भेंटूँ द्रव्य सारी ही ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू =
सन्त नाचीज,
बीज भुने, दें कर अनंत गुणे
।। जयमाला।।
तेरी आदत सी हुई है
मेरे इन नयन को
तुम जा रहे हो तो जाओ
ले जाओ अपने साथ इनको
वरना ये सिसकते रहेंगे
हाले-दिल अपना किससे कहेंगे
कैसे सँभालेंगे हम अपने मन को
मेरे इन नयन को
तेरी आदत सी हुई है
मेरे इन नयन को
तुम जा रहे हो तो जाओ
ले जाओ अपने साथ इनको
नींद रातों की होगी हवा
उम्मीद हाथों में होगी दुआ
पर ये धकायेंगे कब तलक धड़कन को
रह रह कर ख्याल तेरा करेगा परेशां
और जिस्म का वजूद ही क्या वगैर जां
नींद रातों की होगी हवा
उम्मीद हाथों में होगी दुआ
पर ये धकायेंगे कब तलक धड़कन को
तेरी आदत सी हुई है
मेरे इन नयन को
तुम जा रहे हो तो जाओ
ले जाओ अपने साथ इनको
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
बात भी,
‘कीजे’
गुरु जी से,
न सिर्फ मुलाकात ही
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