- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 528
“हाईकू”
स्वप्नों में आने वाले ए !
अपनों में दे दो जगह।।स्थापना।।
छोड़ते जल-धार,
जनम ‘कि चित् हो खाने चार ।।जलं।।
भेंटूॅं चन्दन न्यार,
बन्धन ‘कि चित् हो खाने चार ।।चन्दनं।।
भेंटूॅं धाँ दाने चार,
अपध्याँ ‘कि चित् हो खाने चार ।।अक्षतं।।
भेंटूॅं द्यु-पुष्प पिटार,
मार ‘कि चित् हो खाने चार ।।पुष्पं।।
भेंटूॅं व्यञ्जन मनहार,
क्षुध् ‘कि चित् हो खाने चार ।।नैवेद्यं।।
भेंटूॅं दीप गो दुग्ध सार,
भौ ‘कि चित् हो खाने चार ।।दीपं।।
भेंटूॅं सुगंध गुणकार,
कुप् ‘कि चित् हो खाने चार ।।धूपं।।
भेंटूॅं श्रीफल जटादार, ,
‘ही’ ‘कि चित् हो खाने चार ।।फलं।।
भेंटूॅं भर के अर्घ थाल,
‘मैं’ ‘कि चित् हो खाने चार ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
माँओं को बच्चों के सिवाय,
‘पीछे न आगे’ दिखाय
।।जयमाला।।
अपने गुलशन का एक गुल बना लो हमें
बिल्कुल अपने सा निराकुल बना लो हमें
कुल मिलाकर के अपना लो हमें
अपना बना लो हमें
मैं दिल दे चुका तुम्हें
अब से पल-पल मिरे
मैंने किये हैं नाम तिरे
तुम्हें दिल दे चुका हूँ मैं
नैन अश्रु जल भरे
मैंने किये हैं नाम तिरे
अपने गुलशन का एक गुल बना लो हमें
बिल्कुल अपने सा निराकुल बना लो हमें
कुल मिलाकर के अपना लो हमें
अपना बना लो हमें
मैं दिल दे चुका तुम्हें
अब से पल-पल मिरे
मैंने किये हैं नाम तिरे
तुम्हें दिल दे चुका हूँ मैं
अपने सपने सुनहरे
नैन अश्रु जल भरे
मैंने किये नाम हैं तिरे
अपने गुलशन का एक गुल बना लो हमें
बिल्कुल अपने सा निराकुल बना लो हमें
कुल मिलाकर के अपना लो हमें
अपना बना लो हमें
मैं दिल दे चुका तुम्हें
अब से पल-पल मिरे
मैंने किये हैं नाम तिरे
तुम्हें दिल दे चुका हूँ मैं
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“हाईकू”
राखी, राखिजो यूँ ही पत,
ए ! राम मुझ हनुमत्
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