- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 520
*हाईकू*
बिन स्वस्ति-ए-श्री गुरु,
‘कामयाबी’ न होती शुरु ।।स्थापना।।
लाये उदक घट,
जन्म-मृत्यु ‘कि जाये विघट ।।जलं।।
लाये चन्दन घट,
भवातप ‘कि जाये विघट ।।चन्दनं।।
चढ़ाने लाये अक्षत,
संकट ‘कि जाये विघट ।।अक्षतं।।
लाये पुष्प द्यु संपत्,
मन्मथ ‘कि जाये विघट ।।पुष्पं।।
लाये नैवेद्य घृत,
रोग क्षुधा ‘कि जाये विघट ।।नैवेद्यं।।
लाये दीप गो घृत,
मिथ्यातम ‘कि जाये विघट ।।दीपं।।
लाये सुगंध घट,
कर्मबन्ध ‘कि जाये विघट ।।धूपं।।
लाये श्रीफल अमृत,
गहल ‘कि जाये विघट ।।फलं।।
लाये निकट,
द्रव्य अष्ट,
कष्ट, ‘कि जाये विघट ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
संक्लेश पन्थ,
कभी स्वप्न भी छूते न लेश सन्त
।।जयमाला।।
आप हमें,
अपने-अपने में जोड़ लें
बेजोड़ नहीं
न सही
टूटा फूटा ही
झूठा-झूठा ही
बना अपना ले
आप हमें
सामने नहीं
न सहीं,
सपने में ही,
अपना सनेही बना, अपना ले
आप हमें,
अपने-अपने में जोड़ लें
बेजोड़ नहीं
न सही
टूटा फूटा ही
झूठा-झूठा ही
बना अपना ले
आप हमें
तलक शाम को नहीं
न सहीं
नाम को ही,
बना अपना लें
आप हमें,
अपने-अपने में जोड़ लें
बेजोड़ नहीं
न सही
टूटा फूटा ही
झूठा-झूठा ही
बना अपना ले
आप हमें
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘सत्’-
गुरु जी के साथ में,
होते लड्डू दोनों हाथ में
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