- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 519
=हाईकू =
पड़ें ‘जिस पे’ तेरी नजरें,
उसे निहाल करें ।।स्थापना।।
‘के जल चढ़ा रहा,
भै जन्म और न जाये सहा ।।जलं।।
‘के गंध चढ़ा रहा,
भौ ताप और न जाये सहा ।।चन्दनं।।
‘के शालिक धाँ चढ़ा रहा,
विजोड़ न जाये सहा ।।अक्षतं।।
‘के पुष्प चढ़ा रहा,
मन्मथ और न जाये सहा ।।पुष्पं।।
‘के चरु चढ़ा रहा,
क्षुध् रोग और न जाये सहा ।।नैवेद्यं।।
‘के दीप चढ़ा रहा,
अज्ञान और न जाये सहा ।।दीपं।।
‘के धूप चढ़ा रहा,
अत्त ‘ही’ और न जाये सहा ।।धूपं।।
‘के फल चढ़ा रहा,
मिथ्यात्व और न जाये सहा ।।फलं।।
‘के अर्घ चढ़ा रहा,
विरह और न जाये सहा ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू =
आ गुरुर से कहें अलविदा,
गुरु पे होने फिदा
।। जयमाला।।
हूँ देखता मैं
जब-जब तुम्हें
छा जाती है पूनम सी, अमावसी रातों में
एक चमक सी, रोशनी सी, आ जाती है आँखों में
हल्का सा हो जाता है दिल
हल पा जाती है हर मुश्किल
हूँ देखता मैं
जब जब तुम्हें
चूमती कदम खुद-ब-खुद आ मंजिल ।
इक वजनदारी सी आ जाती है बातों में
छा जाती है पूनम सी, अमावसी रातों में
हूँ देखता मैं
जब-जब तुम्हें
छा जाती है पूनम सी, अमावसी रातों में
एक चमक सी, रोशनी सी, आ जाती है आँखों में
साया सा इक हो जाता संग है।
लकीरों में भर जाता नया सा रंग है।
हूँ देखता मैं
जब जब तुम्हें
सुलझ उड़ती जिन्दगी की पतंग है।
तिलस्मी ताकत सी एक आ जाती है हाथों में
छा जाती है पूनम सी, अमावसी रातों में ॥
हूँ देखता मैं
जब-जब तुम्हें
छा जाती है पूनम सी, अमावसी रातों में
एक चमक सी, रोशनी सी, आ जाती है आँखों में
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
।। हाईकू ।।
एक श्री गुरु नजरिया
दवा ‘भौ-रोग’ शर्तिया
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