- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 508
*हाईकू*
‘और-छोड़ के’ बुलाते,
आ जाते,
श्री गुरु दौड़ के ।।स्थापना।।
हो मृत्यंजय तुम,
जल भेंटूँ, ‘कि हो मृत्यु गुम ।।जलं।।
दूर ‘भौ-दाह’ तुम,
गंध भेंटूँ, ‘कि हो चाह गुम ।।चन्दनं।।
शाश्वत तुम,
अक्षत भेंटूँ, ‘कि हो दुगर्ति गुम ।।अक्षतं।।
जिताक्ष तुम,
सुमन भेंटूँ, ‘कि हो कटाक्ष गुम ।।पुष्पं।।
क्षुध् अभिजित तुम,
व्यंजन भेंटूँ ‘कि हो क्षुध् गुम ।।नैवेद्यं।।
विश्रुत तुम,
प्रदीप भेंटूँ, ‘कि हो दुर्मत गुम ।।दीपं।।
धर्म विद् मर्म तुम,
धूप भेंटूँ ‘कि हों कर्म गुम ।।धूपं।।
हो निराकुल तुम,
फल भेंटूँ ‘कि हो छल गुम ।।फलं।।
दृश् स्वर्ग तुम,
ये अर्घ्य भेंटूँ ‘कि हों त्रिवर्ग गुम ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
न चीन के,
श्री गुरु दें पतझड़ सा न छीन के
।। जयमाला।।
।। जयतु दैगम्बर श्रमण ।।
हाथ कमण्डलु पीछी है ।
रीझ चली दृग् तींजी है ।।
समर्पित श्रद्धा सुमन ।
जयतु दैगम्बर श्रमण ।।१।।
लगन लगी बेला तेला ।
सम सोना माटी ढ़ेला ।।
एक कल भव जल तरण ।
जयतु दैगम्बर श्रमण ।।२।।
आशा दृष्टि हटाई है ।
नासा दृष्टि टिकाई है
सुरत शिव राधा रमण ।
जयतु दैगम्बर श्रमण ।।३।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
आहार देना भी क्या देना,
नव-धा-भक्ति के बिना
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