- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 506
हाईकू
तुझपे आया है,
‘मन’
जा गहरे तू समाया है ।।स्थापना।।
चंचलता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ जल कंचन ।।जलं।।
विकलता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ घिस चन्दन ।।चन्दनं।।
आकुलता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ धाँ-शाली कण ।।अक्षतं।।
मादकता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ स्वर्ग सुमन ।।पुष्पं।।
हा ! गृद्धता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ घृत व्यञ्जन ।।नैवेद्यं।।
विमूढ़ता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ दीप रतन ।।दीपं।।
पामरता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ अगर अन ।।धूपं।।
वंचकता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ फल दक्षिण ।।फलं।।
गहलता खो जाये ‘के मन,
भेंटूँ अर्घ सगुण ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
मिले प्यार ही प्यार हमें,
गुरु के दरबार में
जयमाला
है यही मेरे दिल की आरजू
अय ! दिले नेक तेरी खुशबू
महके जा दिश् चार तक
यही नहीं उस पार तक
इक अकेला, चले तेरा जादू
है यही मेरे दिल की आरजू
सुर्खियों में आ जाये तू
हर दिल में समा जाये तू
सारी दुनिया में छा जाये तू
रहम-दिल-एक
अय ! दिले नेक तेरी खुशबू
महके जा दिश् चार तक
यही नहीं उस पार तक
इक अकेला, चले तेरा जादू
है यही मेरे दिल की आरजू
छू आसमाँ जाये तू
गहरे उतरता जाये तू
मंज़िले-मकसूद पा जाये तू
नेकी जीवन रेख
रहम-दिल-एक
अय ! दिले नेक तेरी खुशबू
महके जा दिश् चार तक
यही नहीं उस पार तक
इक अकेला, चले तेरा जादू
है यही मेरे दिल की आरजू
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
जिनके पास,
पीछी-मोर पंख मैं ‘तिनका-दास’
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