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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 505

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 505

हाईकू

अरिहन्त की निधि,
देती है दिला, सन्त सन्निधि ।।स्थापना।।

चढ़ाऊँ जल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।जलं।।

भेंटूँ संदल ये
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।चन्दनं।।

भेंटूँ तण्डुल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।अक्षतं।।

चढ़ाऊँ गुल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।पुष्पं।।

भेंटूँ शकल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।नैवेद्यं।।

दिया अचल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।दीपं।।

भेंटूँ अनल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।धूपं।।

चढ़ाऊँ फल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।फलं।।

भेंटूँ सकल ये,
चाह ले ‘बस’ तद्-गुण लब्धये ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

मिसरी घुली,
‘गुरु-जिंदगी’
होती किताब खुली

जयमाला

मेरे सिर पे, नहीं क्यूँ रखते हाथ
अब मुझ से, नहीं क्यूँ करते बात

हुई जो गुस्ताखी
तो दे भी दो माफी
जैसे भी है हम
है तेरे ही, तेरी कसम

है तू जो संग
तो है जिन्दगी में रंग

मोर जीना
तोर बिना
वैसे ही जैसे
उड़े पतंग, डोर बिना

मेरे सिर पे, नहीं क्यूँ रखते हाथ
अब मुझ से, नहीं क्यूँ करते बात

हुई जो गुस्ताखी
तो दे भी दो माफी
जैसे भी है हम
है तेरे ही, तेरी कसम

है तू जो संग
तो है जिन्दगी में रंग

मैं गुल हूँ
तुम खुशबू
तुम पानी,
मैं मीना

मोर जीना
तोर बिना
वैसे ही जैसे
उड़े पतंग, डोर बिना

मेरे सिर पे, नहीं क्यूँ रखते हाथ
अब मुझ से, नहीं क्यूँ करते बात

हुई जो गुस्ताखी
तो दे भी दो माफी
जैसे भी है हम
है तेरे ही, तेरी कसम

है तू जो संग
तो है जिन्दगी में रंग
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू

कर साहस देता दूना,
पाँवन श्री गुरु छूना

 

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