- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 494
=हाईकू=
‘दिया’ न किसे स्नेह ‘दे बता’
गुरु और माँ पिता ।।स्थापना।।
यूँ ही न गया बढ़ता चीर,
रोज चढ़ाया नीर।।जलं।।
यूँ ही न सर-पद्म अगन,
रोज भेंटा चन्दन।।चन्दनं।।
यूँ ही न बना नागों का हार,
रोज भेंटे धाँ न्यार ।।अक्षतं।।
यूँ ही न खुले बन्धन,
देर भेंटे श्रद्धा सुमन ।।पुष्पं।।
यूँ ही न शूली का सिंहासन,
रोज भेंटे व्यञ्जन।।नैवेद्यं।।
यूँ ही न बने ज्वार मोती,
प्रजाली रोजाना ज्योती ।।दीपं।।
यूँ ही न हुआ द्यु पूजा जाना,
खेई धूप रोजाना ।।धूपं।।
यूँ ही न विष-सर्प विफल,
रोज भेंटे श्री फल ।।फलं।।
यूँ ही न खुले कपाट पाँव लग,
भेंटे अरघ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
सुना ‘कहते’,
हर वक्त को, ‘गुरु’, सुना करते
।। जयमाला।।
अपना बना लेते
गुरु भगवान्
दे अपनी एक मुस्कान
गुरु भगवान्
हाथ सपना थमा देते
अपना बना लेते
उठाकर,
अपनी एक नजर
अपनी गोद में उठाकर
छुवा आसमाँ देते
हाथ सपना थमा देते
गुरु भगवान्
दे अपनी एक मुस्कान
गुरु भगवान्
हाथ सपना थमा देते
अपना बना लेते
बात कर,
पल-पलक भर
एक छोटी सी मुलाकात कर
गम-मातम-सितम
करके रहमो-करम
कर फना देते,
अपना बना लेते
गुरु भगवान्
दे अपनी एक मुस्कान
गुरु भगवान्
हाथ सपना थमा देते
अपना बना लेते
उठाकर,
अपनी एक नजर
अपनी गोद में उठाकर
छुवा आसमाँ देते
हाथ सपना थमा देते
गुरु भगवान्
दे अपनी एक मुस्कान
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
लीजिये जर्रा देख,
रहा मैं देर से मथ्था टेक
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