परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 478हाईकू
उड़ते,पंछी से, दे-पंख विराम,
‘सन्त’
प्रणाम ।।स्थापना।।भेंट दृग्-जल स्वीकार लीजे,
‘जी-दृग् सजल कीजे ।।जलं।।भेंट चन्दन स्वीकार लीजे,
स्वानु-भवन दीजे ।।चन्दनं।।भेंट अक्षत स्वीकार लीजे,
साधु संगत दीजे ।।अक्षतं।।भेंट प्रसून स्वीकार लीजे,
दिली-सुकून दीजे ।।पुष्पं।।भेंट नैवेज स्वीकार लीजे,
रज-पॉंवन दीजे ।।नैवेद्यं।।भेंट दीपक स्वीकार लीजे,
हंसी-विवेक दीजे ।।दीपं।।भेंट अगर स्वीकार लीजे,
श्रद्धा-सबर दीजे ।।धूपं।।भेंट श्रीफल स्वीकार लीजे,
छैय्या आँचल कीजे ।।फलं।।भेंट अरघ स्वीकार लीजे,
जग सजग कीजे ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
दूर-गुरूर
‘गुरु’-विषयी झंझा-पात सुदूरजयमाला
गुरु जी मारें धम्म धम्म
विद्या आवे छम्म छम्म
क्या नहीं सुना
करते काहे फिर अनसुना
भविष्य शिष्य क्या
बगैर डाँट के
बगैर ‘डॉट’ के
मोल शीशी न दो-पैसा
बात ये रखना, गाँठ बाँध के
भविष्य शिष्य क्या वगैर डाँट के
क्या कहूँ पुनः
क्या नहीं सुना
गुरु जी मारें धम्म धम्म
विद्या आवे छम्म छम्म
क्या नहीं सुना
करते काहे फिर अनसुनाभीतर ओट कर
बाहर चोट कर
कुम्भकार
क्षार-क्षार
कर देता खोट-हर
नहीं किसको खबर
जमीं पाताल अम्बर
विदिश्-दिश को खबर
गुरु जी नमो नमः
क्या नहीं सुना,कम नहीं
ताव दे कर सोला पूरे
बना सलोना
कंचन सोना
कर दे पूरे, स्वप्न अधूरे
है किससे छुपा
किस्से किस्से तो छपा
गुरु जी नमो नमः
क्या नहीं सुना,
गुरु जी मारें धम्म धम्म
विद्या आवे छम्म छम्म
क्या नहीं सुना
करते काहे फिर अनसुना।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
‘हाईकू’
सबर वाले,
‘होते’
गुरु पारखी नजर वाले
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