- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 468
=हाईकू=
गुरु,
तंग न कर सके तपन,
चाले पवन ।।स्थापना।।
खोजा, न और कुछ पाया,
आँखों में पानी ले आया ।।जलं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
घोल के हल्दी ले आया ।।चन्दनं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
टुकड़ी धान ले आया ।।अक्षतं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
ले रँगे चावल आया ।।पुष्पं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
ले कि स्वर-व्यंजन आया ।।नैवेद्यं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
ले रँगे चिटक आया ।।दीपं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
तोड़ के लौंग ले आया ।।धूपं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
बादाम ले चला आया ।।फलं।।
खोजा, न और कुछ पाया,
ले जुड़े हाथ दो आया ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
विचित्र,
‘होते’ श्री गुरु जी के मित्र,
जेते निमित्त
जयमाला
छू आसमाँ रहा हूँ
आज मैं जहाँ हूँ
सब तेरी है जादूगरी
मैंने पकड़ी
तेरी छिगरी
जब से
तब से
उड़ी पतंग मेरी
सब तेरी, है जादूगरी
छू आसमाँ रहा हूँ
आज मैं जहाँ हूँ
छत्र-छाया
नीचे आया
जब से,
तब से
सबरी जिन्दगी मेरी,
सब तेरी, है जादूगरी,
छू आसमाँ रहा हूँ
आज मैं जहाँ हूँ
रक्खा मैंने
तुम्हें मन में
जब से,
तब से
तरी पन्डुबी मेरी,
सब तेरी, है जादूगरी,
छू आसमाँ रहा हूँ
आज मैं जहाँ हूँ
सब तेरी है जादूगरी
मैंने पकड़ी
तेरी छिगरी
जब से
तब से
उड़ी पतंग मेरी
सब तेरी, है जादूगरी
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
झाँकें बगलें,
‘बदमाशियाँ’ देख गुरु भग-लें
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