- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 467
=हाईकू=
था चाहता,
हूँ चाहता,
मैं चाहूँगा भी,
तूम्हें यूँ ही ।।स्थापना।।
भाग दृग् जल सा पाने आये,
दाग हटाने आये ।।जलं।।
भाग चन्दन सा पाने आये,
तुम्हें मनाने आये ।।चन्दनं।।
भाग अक्षत सा पाने आये,
गाने तराने आये ।।अक्षतं।।
भाग सुमन सा पाने आये,
तृष्णा सिराने आये ।।पुष्पं।।
भाग चरु घी सा पाने आये,
स्वात्म तपाने आये ।।नैवेद्यं।।
भाग प्रदीप सा पाने आये,
मोह मिटाने आये ।।दीपं।।
भाग सुगंध सा पाने आये,
द्वन्द घटाने आये ।।धूपं।।
भाग श्रीफल सा पाने आये,
जाग रिझाने आये ।।फलं।।
भाग अरघ सा पाने आये,
अघ झराने आये ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
लिख सुकूने शाम दो,
मेरे नाम, मेरे राम ओ
जयमाला
बना बिगड़ा काम दो
मेरा हाथ थाम लो
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ
हाथ तेरा
इतनी समझ ही कहाँ रखता हूँ
हाथ मेरा, तुम न छोड़ोगे कभी
है मुझे यकीं
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
मैं मंजिल तक चाहता हूँ साथ तेरा
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ हाथ तेरा
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
है पहेली सफर
ऊँची नीची डगर
मेरा हाथ थाम लो,
बना बिगड़ा काम दो
मेरा हाथ थाम लो
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ
हाथ तेरा
इतनी समझ ही कहाँ रखता हूँ
हाथ मेरा, तुम न छोड़ोगे कभी
है मुझे यकीं
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
मैं मंजिल तक चाहता हूँ साथ तेरा
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ हाथ तेरा
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
रात स्याही घनी
और है दूर छावनी
मेरा हाथ थाम लो,
बना बिगड़ा काम दो
मेरा हाथ थाम लो
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ
हाथ तेरा
इतनी समझ ही कहाँ रखता हूँ
हाथ मेरा, तुम न छोड़ोगे कभी
है मुझे यकीं
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
मैं मंजिल तक चाहता हूँ साथ तेरा
मैं तो छोड़ भी सकता हूँ हाथ तेरा
तुम न छोड़ोगे कभी हाथ मेरा
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
आप चर्ण-सन्-निधि में,
मिले मर्ण-समाधि हमें
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