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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 463

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 463

=हाईकू=
जितने बौर-आम,
तुम्हें उतने बार प्रणाम ।।स्थापना।।

दृग् जल लाये,
दृग् जल सा हितौर बहने आये ।।जलं।।

चन्दन लाये,
चन्दन सा शीतल बनने आये ।।चन्दनं।।

अक्षत लाये,
अक्षत सा अब न जन्मने आये ।।अक्षतं।।

पुष्प लाये,
‘कि पुष्प सा बीच काँटे रहना आये ।।पुष्पं।।

व्यंजन लाये,
‘कि व्यंजन सा मन हरना आये ।।नैवेद्यं।।

दीप लाये,
‘कि दीप सा पर-हित जलना आये ।।दीपं।।

धूप लाये,
‘कि धूप सा महकते मिटना आये ।।धूपं।।

श्री फल लाये,
श्री फल सा हाथों को करना आये ।।फलं।।

अर्घ लाये,
‘कि अर्घ सा मिल-जुल रहना आये ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
तरु चन्दन
‘दे महका ‘जी-वन’ गुरु सज्जन

जयमाला

इक जमाना गया गुजर
आपने गुरुवर
उठा के नजर
न देखा इधर
हो क्या नाराज मुझसे
तो कह भी दो आज मुझसे
वो नाराजगी का राज खुलकर
क्यों मुस्कुराकर,
न देखा इधर
इक जमाना गया गुजर
आपने गुरुवर
उठा के नजर
न देखा इधर

बन पड़ी भूल तो आप मुझको
जानकर नादान इक मुआफ कर दो
ये भी कोई बात हुई, बैठे हो रुठकर
हो क्या नाराज मुझसे
तो कह भी दो आज मुझसे
वो नाराजगी का राज खुलकर
क्यों मुस्कुराकर,
न देखा इधर
इक जमाना गया गुजर
आपने गुरुवर
उठा के नजर
न देखा इधर

आँखों में लिये अश्रु जल
रहता खड़ा, मैं अपने बना हाथ श्री फल
जाकर न इधर उधर, अपने ही द्वार पर
हो क्या नाराज मुझसे
तो कह भी दो आज मुझसे
वो नाराजगी का राज खुलकर
क्यों मुस्कुराकर,
न देखा इधर
इक जमाना गया गुजर
आपने गुरुवर
उठा के नजर
न देखा इधर
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
फिर न उठूँ, ‘समोद में’,
सो जाऊँ तेरी गोद में

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