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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 461

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 461

    =हाईकू=
    वो फूल तुम,
    कभी न हो जिसकी मुस्कान-गुम ।।स्थापना।।

    आज को कल-सा न गवाने,
    जल लाये चढ़ाने ।।जलं।।

    खुश्बू जल के भी दे पाने,
    चन्दन लाये चढ़ाने ।।चन्दनं।।

    राज अक्षत पाने,
    चढ़ाने लाये अक्षत दाने ।।अक्षतं।।

    रोज तराने आप गाने,
    सरोज लाये चढ़ाने ।।पुष्पं।।

    बोझ सर का सरका पाने,
    चरु लाये चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।

    तले अंधेरा विघटाने,
    घी दिया लाये चढ़ाने ।।दीपं।।

    पल चिद्रूप निरख पाने,
    धूप लाये चढ़ाने ।।धूपं।।

    जगत् जगत रह पाने,
    श्री फल लाये चढ़ाने ।।फलं।।

    खोज सत्य की कर पाने,
    ये द्रव्य लाये चढ़ाने ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=
    जमीं से, पानी पाने समान,
    गुरु से पाना ज्ञान

    जयमाला

    आसमां ने
    दो जहां ने
    बताया मुझको
    आँसु पोंछना
    औरों के बारे में सोचना
    है आया तुझको

    नारियल हाथों का अपने
    लिये इसलिये आँखों में सपने
    घूम फिर के सब दूर
    ए ! आसमानी नूर
    गगन जैन सूर !
    घूम फिर के सब दूर
    तेरे दरबार में
    आया हूँ इस बार मैं

    अश्रु जल आँखों का अपने
    लिये इसलिये आँखों में सपने
    परमात्मा ने,
    मेरी माँ ने,
    आसमां ने
    दो जहां ने
    बताया मुझको दर्द सोखना,
    देते-देते हाथ न सकोचना
    है आया तुझको

    परमात्मा ने,
    मेरी माँ ने,
    आसमां ने
    दो जहां ने
    बताया मुझको, गाँठ बिन जोड़ना
    ले बलाएँ तिनके तोड़ना
    है आया तुझको

    गगन जैन सूर !
    घूम फिर के सब दूर
    तेरे दरबार में
    आया हूँ इस बार मैं
    ।। जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू=
    न लेवें रस,
    ‘टोकने में’,
    डाल श्री गुरु दें जश

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