परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 456=हाईकू=
न सूना जाये बरष,
कृपा तेरी जाये बरस ।।स्थापना।।‘के हाथी आदि, गहल बिलायें,
दृगू जल चढ़ायें ।।जलं।।पाप बंधन नश जायें,
सुगन्ध रस चढ़ायें ।।चन्दनं।।कालीं शक्तियाँ, बेतालीं बिलायें,
धाँ शाली चढ़ायें ।।अक्षतं।।शिकवे गिले बिलायें,
पुष्प खिले-खुले चढ़ायें ।।पुष्पं।।क्षुधादि रोग बिलायें,
नीके घी के भोग चढ़ायें ।।नैवेद्यं।।सभी आठों ही मद बिलायें,
दिया घृत चढ़ायें ।।दीपं।।हा ! बहुरूप बिलायें,
दश-गंध धूप चढ़ायें ।।धूपं।।अमिट माथे की सल बिलायें,
श्रीफल चढ़ायें ।।फलं।।दुश्वारीं पाँत बिलायें,
द्रव्य एक सात चढ़ायें ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
तेरे चरणों की धूल मैं,
हो खुश्बू तुम, फूल मैंजयमाला
गुरु किरपा
लागी हाथ
वही एकाध
बड़ भाग
जुदा ही फागगुरु किरपा
जादुई चिराग
थमा जाये दिल में ठण्डक
ले चाले मंजिल तलक़
है किससे छुपागुरु किरपा
लागी हाथ
वही एकाध
बड़ भाग
जुदा ही फागकरती है नजर बेशक
एक परमेश्वर की झलक
पन्ने-पन्ने तो है छपा
है किससे छुपागुरु किरपा
लागी हाथ
वही एकाध
बड़ भाग
जुदा ही फाग
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।=हाईकू=
दूँ जब-जब आवाज,
‘राखी’ यूँ ही, राखना लाज
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