परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 448=हाईकू=
चाहता तुझे
पाने की ‘दे-बता’ है क्या रास्ता मुझे ।।स्थापना।।भौ-भौ दृग् जल भेंट फल,
‘धी’ जल-भिन्न कमल ।।जलं।।भौ-भौ चन्दन भेंट फल,
हटके ठण्डक दिल ।।चंदनं।।भौ-भौ तण्डुल भेंट फल,
कदम चूमें मंजिल ।।अक्षतं।।भौ-भौ सुमन भेंट फल,
हाथ दो सुकून पल ।।पुष्पं।।भौ-भौ नैवेध भेंट फल,
न करे क्षुधा विकल ।।नैवेद्यं।।भौ-भौ प्रदीप भेंट फल,
भीतर ज्ञान पटल ।।दीपं।।भौ-भौ अगर भेंट फल,
आज न फिकर कल ।।धूपं।।भौ-भौ श्रीफल भेंट फल,
वैभव इह सकल ।।फलं।।भौ-भौ अरघ भेंट फल,
दो टूक ‘नन्त’ गहल ।।अर्घं।।=हाईकू=
ख्याति पा सकी,
लाजवन्ती गुरु जी कृपा आपकीजयमाला
भाव ले मीरा के मन के
जो बावरे बन के
भाव ले शबरी के मन के
करते हैं अर्पण
देते ही देते हैं
गुरुदेव उन्हें दर्शन
आके उनके अपने घर
आके उनके सपने हर
देते ही देते हैं
गुरुदेव उन्हें दर्शनभाव ले चन्दना के मन के
जो बावरे बन के
भाव ले शबरी के मन के
भाव ले मीरा के मन के
आके उनके दिल अन्दर
समा के उनके मन मन्दर
देते ही देते ही
गुरुदेव उन्हें दर्शनभाव ले मीरा के मन के
जो बावरे बन के
भाव ले शबरी के मन के
करते हैं अर्पण
देते ही देते हैं
गुरुदेव उन्हें दर्शन
आके उनके अपने घर
आके उनके सपने हर
देते ही देते हैं
गुरुदेव उन्हें दर्शन
।। जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
मिलता कुछ बिना फरियाद,
तो गुरु प्रसाद
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