परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 441हाईकू
दयावतार निरे,
आ जाओ कभी तो द्वार मिरे ।।स्थापना।।सिवा दृग्-जल,
कुछ भी, मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।जलं।।क्या चढ़ाऊँ,
ये चन्दन, मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।चन्दनं।।क्या भिंटाऊँ,
ये धाँ थाल, मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।अक्षतं।।क्या भेंटूँ,
पुष्प थाल ये, मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।पुष्पं।।दृग् झुकाऊँ,
ये नैवेद्य मेरा नहीं,
दिया तेरा हो ।।नैवेद्यं।।सूरज को क्या दिखाऊँ,
मेरा नहीं
‘दिया’ तेरा ही ।।दीपं।।क्या खेयूँ,
धूप-घट ये मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।धूपं।।क्यूँ बचाऊँ,
ये श्री-फल मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।फलं।।सिर नवाऊँ,
ये अर्घ्य मेरा नहीं,
दिया तेरा ही ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
गुजारा लम्हा भी गुरु जी के साथ,
करे आबादजयमाला
देने लगो, तुम अपना वक्त हमें
कहने लगो, तुम अपना भक्त हमें
ऐसा मैं, क्या करके दिखलाऊँ
‘के तेरे अपनों में बना जगह पाऊँ
जरा सी सही
श्री गुरुजीदेने लगो तुम अपना वक्त हमें
कहने लगी तुम अपना भक्त हमें
ऐसा मैं, क्या करके दिखलाऊँ
‘के तेरे सपनों में बना जगह पाऊँ
सही थोड़ी ही
जी गुरुजीदेने लगो तुम अपना वक्त हमें
कहने लगो तुम अपना भक्त हमें
ऐसा मैं, क्या करके दिखलाऊँ
‘के तेरे चरणों में बना जगह पाऊँ
जरा सी सही,
सही थोड़ी ही
जी गुरुजी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
डर लगता मुझे
‘अकेले’
मत छोड़ना मुझे
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