परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 440हाईकू
खोजती फिरें
‘नजरें’
जो किसी को
तो हो तुम्हीं वो ।।स्थापना।।ले लो अपनी शरण,
दृग् सजल मुझे भगवन् ।।जलं।।ले लो अपनी शरण,
लिपटें हैं नाग चन्दन ।।चन्दनं।।ले लो अपनी शरण,
सिर्फ नाम अक्षत कण ।।अक्षतं।।ले लो अपनी शरण,
साथ काँटों के हैं सुमन ।।पुष्पं।।ले लो अपनी शरण,
अत्त ढाये है क्षुध्-वेदन ।।नैवेद्यं।।ले लो अपनी शरण,
तले दीप तम सघन ।।दीपं।।ले लो अपनी शरण,
धूप धूम्र भरे गगन ।।धूपं।।ले लो अपनी शरण,
निरखूँ ले फल-चरण ।।फलं।।ले लो अपनी शरण,
‘द्रव्य’ और संस्थिर-क्षण ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
कभी न आते,
‘द्वार’
गुरु उनके भी चले आतेजयमाला
मुझे तो तुम बहुत याद आते हो ।
ढेर सारे हैं भक्त तुम्हारे
कहीं तुम, मुझे भूल तो न जाते हो ।आँखें मेरी गंगा-जमुना बनाते हो ।
रह-रह के रुलाते हो
मुझे तो तुम, बहुत याद आते हो ।
प्यारे-प्यारे
हैं भक्त तुम्हारे
ढेर सारे
कहीं तुम, मुझे भूल तो न जाते हो ।दिन का चैन,
रातों की निंदिया चुराते हो ।
रह-रह के रुलाते हो
मुझे तो तुम, बहुत याद आते हो ।
प्यारे-प्यारे
हैं भक्त तुम्हारे
ढेर सारे
कहीं तुम, मुझे भूल तो न जाते हो ।पलक झपाते ही दिख जाते हो ।
रह-रह के रुलाते हो
मुझे तो तुम, बहुत याद आते हो।
प्यारे-प्यारे
हैं भक्त तुम्हारे
ढेर सारे
कहीं तुम, मुझे भूल तो न जाते हो ।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
न भुलायेंगे,
हम आयेंगे,
आप जो बुलायेंगे
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