परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 437हाईकू
माँ बन,
गुरु देते सुलझा,
बच्चों की उलझन ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ओ चरित हिमाल !
दो का निहाल ।।जलं।।भेंटूँ संदल, ओ दीन दयाल !
दो कर निहाल ।।चन्दनं।।भेंटूँ तण्डुल, ओ मति मराल !
दो कर निहाल ।।अक्षतं।।भेंटूँ गुल, ओ हृदय विशाल !
दो कर निहाल ।।पुष्पं।।भेंटूँ क्षुध्-हर, अहो ! वैद्य-बाल !
दो कर निहाल ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ ज्योतर ओ ‘तेजो-मै-भाल’
दो का निहाल ।।दीपं।।भेंटूँ अगर ओ शगुन माल !
दो कर निहाल ।।धूपं।।भेंटूँ फल, ओ अभिजित काल !
दो कर निहाल ।।फलं।।भेंटूँ सकल, ओ कलि गोपाल !
दो कर निहाल ।।अर्घ्यं।।हाईकू
खोल हृदय को,
दें गुरु बोल दो,
हर-वय-कोजयमाला
।। जय जयन्त ।।
गुण अनंत ।
मन भदन्त ।
दरद मन्द ।
दया वन्त ।।
सुत श्रिमन्त ।
जय जयन्त ।।१।।अन्य पन्थ ।
कथन मन्त्र ।।
सूर चन्द ।
पूर नन्द ।।
सुत श्रिमन्त ।
जय जयन्त ।।२।।अक्ष हन्त ।
रक्ष जन्त ।।
सार ग्रन्थ ।
चारु छन्द ।।
सुत श्रिमन्त ।
जय जयन्त ।।३।।वीत द्वन्द ।
प्रीत कुन्द ।।
ज्ञान नन्द ।
थान सन्ध ।।
सुत श्रिमन्त ।
जय जयन्त ।।४।।जश बसंत ।
पुन समन्त ।।
मोख कन्त ।
ढ़ोक नन्त ।।
सुत श्रिमन्त ।
जय जयन्त ।।५।।।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
होऊँ सहजो-निराकुल थारे सा,
कर दो ऐसा
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