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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 434

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 434

हाईकू

छोटा हो, कोई या बड़ा,
‘गुरु-द्वार’ सभी को खुला ।।स्थापना।।

ले लो अपने अपनों में,
दृग्-जल ये, और हमें ।।जलं।।

ले लो अपनी शरण में,
चन्दन ये, और हमें ।।चन्दनं।।

ले लो अपने संकुल में,
तण्डुल ये, और हमें ।।अक्षतं।।

ले लो अपने गुरु-कुल में,
गुल ये, और हमें ।।पुष्पं।।

ले लो अपनी पनाह में,
नेवज ये, और हमें ।।नैवेद्यं।।

ले लो अपनी शिविका में,
दीपिका ये, और हमें ।।दीपं।।

ले लो अपनी छाँव में,
नूप-धूप ये, और हमें ।।धूपं।।

ले लो अपनी नाव में,
ऋत-फल ये, और हमें ।।फलं।।

ले लो अपनी निगाह में,
अरघ ये, और हमें ।।अर्घ्यं।।

हाईकू

स्वार्थ कोई न,
पै खातिर-किसकी गुरु रोई न

जयमाला

हैं जुदा ही साथी, साँची
गुरु जी
खुदा की फोटो-कॅापी

की गुस्ताखिंयों की
दे देते हैं माफी
भाँति माँ की
हैं जुदा ही साथी, साँची
गुरु जी
खुदा की फोटो-कॅापी
दे देते हैं माफी

कभी न कहते बच्चों को सर-भार ।
देते रहते बच्चों को लाड़-प्यार ॥
भाँति-माँ की
हैं जुदा ही साथी, साँची
गुरु जी
खुदा की फोटो-कॅापी
दे देते हैं माफी

खातिर बच्चों की जाते हार हैं ।
जाँ बच्चों पे कर जाते निसार हैं ।
भाँति-माँ की
हैं जुदा ही साथी, साँची
गुरु जी
खुदा की फोटो-कॅापी
की गुस्ताखिंयों की
दे देते हैं माफी
भाँति माँ की
हैं जुदा ही साथी, साँची
गुरु जी
खुदा की फोटो-कॅापी
दे देते हैं माफी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

सौगन्ध तुम्हें,
चले जाना न रोते छोड़ के हमें

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