परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 436=हाईकू=
टूटा रिश्ता भी रखे संभाल,
गुरु तन्तु-मृणाल ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, दो बना हिया दरिया,
जिया वसिया ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन, दो बना मुरलिया,
जिया वसिया ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत, दो बना गगरिया,
जिया वसिया ।।अक्षतं।।भेंटूँ सुमन, दो बना पिक करिया,
जिया वसिया ।।पुष्पं।।भेंटूँ चरु, दो बना, चारु बढ़िया,
जिया वसिया ।।नैवेद्यं।।भेटू दीप, दो बना, खुशी जरिया,
जिया वसिया ।।दीपं।।भेंटूँ धूप, दो बना मन हरिया,
जिया वसिया ।।धूपं।।भेंटूँ फल, दो बना शिवपुरिया,
जिया वसिया ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ, दो बना अनर्घ चर्या,
जिया वसिया ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
कुछ न लेते…
नमोऽस्तु सिवा गुरु जी क्’या न’ देते।। जयमाला।।
आओ कभी तो उतर
अय ! मेरे चाँद मेरे आँगन में
हूँ फैलाये खड़ा दामन मैं
है गुजरने को इक उमरपास ही झील में, हर रोज आते हो
मुझे बस मुझे ही, क्यों कर रुलाते हो
बराबर हैं तुम्हें तो भक्त हर
आओ कभी तो उतर
अय ! मेरे चाँद मेरे आँगन में
हूँ फैलाये खड़ा दामन मैं
है गुजरने को इक उमरनीले आसमान में, हर रोज आते हो
मुझे बस मुझे ही, क्यों भूल जाते हो
माँ का दिल किया खुदा ने तुम्हें नजर,
बराबर हैं तुम्हें तो भक्त हर
आओ कभी तो उतर
अय ! मेरे चाँद मेरे आँगन में
हूँ फैलाये खड़ा दामन मैं
है गुजरने को इक उमर
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
चाहत से भी ज्यादा, पा जाये तू…
हैं मेरी आरजू
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