परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 433=हाईकू=
पाये ‘कि गुरु-पग-पखार
आई ‘द्यु’ गंग-धार ।।स्थापना।।हैं लाये भेंट जल,
बनने जल भिन्न कमल ।।जलं।।हैं लाये भेंट संदल,
पाने आपके कुछ पल ।।चन्दनं।।हैं लाये भेंट तण्डुल,
पाने आप का गुरुकुल ।।अक्षतं।।हैं लाये भेंट गुल,
पाने मुनि सा मन मंजुल ।।पुष्पं।।हैं लाये भेंट चरु-नवल,
पाने अनन्त बल ।।नैवेद्यं।।हैं लाये भेंट दीप-अचल,
पाने ज्ञान सकल ।।दीपं।।हैं लाये भेंट धूप-धवल
पाने आप संबल ।।धूपं।।हैं लाये भेंट फल,
पाने आप-सा कल उज्ज्वल ।।फलं।।हैं लाये भेंट द्रव्य-सकल,
होने भव्य सफल ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
खूबसूरत, भीतर बाहर से,
गुरु एक-सेजयमाला
इक कदम बस बढ़ाना पड़ा
माटी को
फिर दिया ‘ना’ बना क्या घड़ा
साथी ओ !
है किसकी नहीं खबर
है बड़े दयालु गुरुवर
और न सिर्फ माटी की
यहाँ तक ‘कि छोटी-सी भी चींटी की
करते रहते फिकरहैं बड़े कृपालु गुरुवर
हैं बड़े दयालु गुरुवरएक कदम बस पड़ा बनाना
काँच को
फिर दिया ‘ना’ बना क्या आईना
आँच क्या साँच को
है किसकी नहीं खबर
है बड़े दयालु गुरुवर
और न सिर्फ काँच की
अपने पराये सबकी सखी !
करते रहते फिकरहैं बड़े कृपालु गुरुवर
हैं बड़े दयालु गुरुवर
।। जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
किये छिद्रों को देते हैं भर,
‘धागे’ श्री गुरुवर
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