- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 432
हाईकू
आये सूरज किरण,
छूने आप रज-चरण ।।स्थापना।।
बोझा ‘सर’ दो उतार,
ले जल ये, हैं आये द्वार ।।जलं।।
नैय्या लगा दो किनार,
चन्दन ले, हैं आये द्वार ।।चन्दनं।।
‘हंस’ वंश लो बिठार,
अक्षत ले, हैं आये द्वार ।।अक्षतं।।
हित स्वानुभौ औतार,
ले पुष्प ये, हैं आये द्वार ।।पुष्पं।।
भोग-रोग दो विडार,
नैवेद्य ले, हैं आये द्वार ।।नैवेद्यं।।
रंग-आप लो श्रृंगार,
ले दीप ये, हैं आये द्वार ।।दीपं।।
राह-श्याह दो सँहार,
ले धूप ये, हैं आये द्वार ।।धूपं।।
संकटों से दो उबार,
श्रीफल ले, हैं आये द्वार ।।फलं।।
सुन भी तो लो पुकार,
ले अर्घ्य ये, हैं आये द्वार ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
झिराना भूले न प्रेम,
‘गुरु’
पूछ कुशल क्षेम
जयमाला
देना मुझे ना भुला
हो जा रहे तुम जहाँ
पहुँचते ही वहाँ
लेना मुझे भी बुला
देना मुझे ना भुला
आयेगा, याद आयेगा मुझे
हो के रुबरु तेरे, देखते रहना तुझे
वो मुझे, ‘कि पाये न रुला
लेना मुझे भी बुला
देना मुझे ना भुला
हो जा रहे तुम जहाँ
पहुँचते ही वहाँ
लेना मुझे भी बुला
देना मुझे ना भुला
तरबतर नैना
नैना झपाये बिना, ढाई अखर
ए ! मेरे गुरुवर
सुनते जाना तुझे
वो मुझे ‘कि पाये न रुला
लेना मुझे भी बुला
देना मुझे ना भुला
हो जा रहे तुम जहाँ
पहुँचते ही वहाँ
लेना मुझे भी बुला
देना मुझे ना भुला
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
देते बच्चों के मन की कर,
दूजे माँ गुरुवर
Sharing is caring!