परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 426हाईकू
साँच कहते,
‘दिल में मेरे सिर्फ’ आप रहते ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ए ! और भान,
दो मेरा कर कल्याण ।।जलं।।भेंटूँ गंध, ए ! मोड़ थान
दो मेरा कर कल्याण ।।चन्दनं।।भेंटूँ सुधाँ, ए होड़ हान,
दो मेरा कर कल्याण ।।अक्षतं।।भेंटूँ पुष्प, ए ! तोड़-मान,
दो मेरा कर कल्याण ।।पुष्पं।।भेंटूँ चरु, ए ! भोर तान,
दो मेरा कर कल्याण ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीप, ए ! जोड़ ज्ञान,
दो मेरा कर कल्याण ।।दीपं।।भेंटूँ धूप, ए ! गौर ध्यान,
दो मेरा कर कल्याण ।।धूपं।।भेंटूँ फल ए ! डोर आन,
दो मेरा कर कल्याण ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ, ए ! मोर प्राण,
दो मेरा कर कल्याण ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
गुरु जी निशाँ जाते छोड़,
‘कि शिशु आ सकें दौड़जयमाला
न अपनों को ही
जो अजनबियों को भी
ले चलें खींचे
लगा अपने पीछे
है नाम उनमें सिरफ
इक तेरा ही,
अय ! मेरे रबदे छैय्या देते हो
न रूपैय्या लेते हो
खै नैय्या देते होकिया तुमने सब से प्यार है
लगा कोई कब तुम्हें भार है
है मुझे तुम पे गरब,
अय ! मेरे रबगगरिया दी बना
माटी, लाठी अपना
मुरलिया ली बनाकिया तुमने कब व्यापार है
लगा कोई कब तुम्हें भार है
है मुझे तुम पे गरब,
अय ! मेरे रब।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
दिया तुमने थमा साहिल,
कहाँ मैं था काबिल
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