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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 424

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 424

    हाईकू
    आपने जो आ, रुखा सूखा स्वीकार लिया
    शुक्रिया ।।स्थापना।।

    रखना यूँ ही, छत्र-छाँव बनाये,
    ‘कि जल लाये ।।जलं।।

    रखना यूँ ही, ‘कि अदना बनाये,
    चन्दन लाये ।।चन्दनं।।

    रखना यूँ ही, ‘कि आशीष बनाये,
    अक्षत लाये ।।अक्षतं।।

    रखना यूँ ही, दया-दृष्टि बनाये,
    ‘कि पुष्प लाये ।।पुष्पं।।

    रखना यूँ ही, ‘कि करुणा बनाये
    नैवेद्य लाये ।।नैवेद्यं।।

    रखना यूँ ही, ‘मन-बाला’ बनाये,
    ‘कि दीप लाये ।।दीपं।।

    रखना यूँ ही, दया बनाये,
    धूप अनूप लाये ।।धूपं।।

    रखना यूँ ही, अनुकम्पा बनाये,
    श्रीफल लाये ।।फलं।।

    रखना यूँ ही, ‘कि किरपा बनाये,
    अरघ लाये ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=

    पा गुरु हाथों का स्पर्श,
    शिशु बन जाता आदर्श

    जयमाला

    अकेले चलने का
    है मुझमें साहस कहाँ
    ले चलो साथ अपने
    जा रहे हो तुम जहाँ
    है मुझे भी जाना वहाँ
    मेरा ले हाथों में हाथ अपने !
    ले चलो साथ अपने,
    जा रहे हो तुम जहाँ

    नहीं दिल में कहीं जलन
    नहीं माथे कहीं सिकन
    जहाँ,
    ऐसा वो जहाँ
    है सभी अपने में मगन

    नहीं आपसी अनबन
    नहीं सिक्कों की खनखन,
    जहाँ,
    ऐसा वो जहाँ
    है सभी के सभी निरञ्जन
    है मुझे भी जाना वहाँ,

    बाकी न कोई सुपन
    झांकी न कोई विघन
    जहाँ,
    ऐसा वो जहाँ
    सतत सुख निरा-कुल रमण
    है मुझे भी जाना वहाँ,
    अकेले चलने का
    है मुझमें साहस कहाँ

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू=

    दे वरदान दो हमें,
    देखता यूँ ही रहूँ तुम्हें

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