परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 421=हाईकू=
सभी कुछ दे दिया तुम्हें,
पहली ही नजर में ।।स्थापना।।भेंटूँ जल, ए ! सर अध्यात्म हंसा,
संपूरो मंशा ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन, ए ! मसीहा अहिंसा,
संपूरो मंशा ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत, ए ! ध्वज वीर वंशा,
संपूरो मंशा ।।अक्षतं।।भेंटूँ पुष्प, ए ! दूर आत्म प्रशंसा,
संपूरो मंशा ।।पुष्पं।।भेंटूँ नैवेद्य ए ! रोग क्षुध् विध्वंसा,
संपूरो मंशा ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीप, ए ! विदेह देह इंसा,
संपूरो मंशा ।।दीपं।।भेंटूँ धूप ए ! कर्तरि वंशी वंशा,
संपूरो मंशा ।।धूपं।।भेंटूँ फल ए ! मन शिशु मन सा,
संपूरो मंशा ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ ए ! भावी शिव शहंसा
संपूरो मंशा ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
सिखाते साथ अफसोश मरना,
गुरु न ‘जी’-ना।। जयमाला।।
करूँ मैं कैसे अदा
शुक्रिया तेरा
तूने इतना दिया
इक अजनबी को
तूने अपना लिया
इक अजनबी को
दे दीया, क्या क्या न दे दिया‘निन्यानौ का फेरा’ नहीं है
अब जिन्दगी में मेरी
जरा सा भी अंधेरा नहीं है
शुक्रिया
दे दीया-क्या क्या न दे दिया ।
करूँ मैं कैसे अदा
शुक्रिया तेराविषयों का चेरा नहीं है
मुआ ! मनुआ ये अब
करता तेरा मेरा नहीं है
शुक्रिया
दे दीया-क्या क्या न दे दिया ।
करूँ मैं कैसे अदा
शुक्रिया तेरादुर्भावों का घेरा नहीं है ।
सपने में भी अब,
चेहरे पे चेहरा नहीं है ।
करूँ मैं कैसे अदा
शुक्रिया तेरा
तूने इतना दिया
इक अजनबी को
तूने अपना लिया।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
नहीं किसका खास है,
वो,
जो गुरु जी के पास है
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