- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 422
=हाईकू=
सिवाय थारे,
रहा न अब कुछ भी, पास म्हारे ।।स्थापना।।
भेंटूँ जल, ए ! एक सहारे,
कष्ट मेंटो हमारे ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन ए ! पुण्य-द्वारे,
पाप मेंटो हमारे ।।चन्दनं।।
भेंटूँ धाँ, भो ! भौ-जल किनारे,
दुर्ध्यां मेंटो हमारे ।।अक्षतं।।
भेंटूँ पुष्प ए ! तारण-हारे,
दोष मेंटो हमारे ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नैवेद्य ए ! सूर्य न्यारे,
रोग मेंटो हमारे ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दीप, ‘भी’ ध्रुव तारे !
अंधेरे मेंटो हमारे ।।दीपं।।
भेंटूँ धूप ए ! नूप-नजारे,
कर्म मेंटो हमारे ।।धूपं।।
भेंटूँ फल ए ! सौख्य पिटारे,
दुक्ख मेंटो हमारे ।।फलं।।
भेंटूँ अर्घ ए ! भगवन् म्हारे,
अघ मेंटो हमारे ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
खेल खेल में,
देते बना, गुरु जी ‘आईना’ हमें
।। जयमाला।।
आये जो याद तेरी
तो दे बता
किया मैं करूँ क्या
अय ! मेरे गुरु सा
दिन-रैन
मेरे ये नैन
भिंगाये जो याद तेरी
आके फिर न जाये जो याद तेरी
तो दे बता
किया मैं करूँ क्या
करार मेरे मन का चैन
चुरा के ले जाये जो याद तेरी
दिन-रैन
मेरे ये नैन
भिंगाये जो याद तेरी
आके फिर न जाये जो याद तेरी
तो दे बता
किया मैं करूँ क्या
काली काली रातों की निंदिया,
उड़ा के ले जाये जो याद तेरी
दिन-रैन
मेरे ये नैन
भिंगाये जो याद तेरी
आके फिर न जाये जो याद तेरी
तो दे बता
किया मैं करूँ क्या
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
छतरी गुरु-कृपा छुई,
‘कि दुख वर्षा छू हुई
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