परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 417=हाईकू=
कर दें काम मन का,
‘गुरु’
न लें नाम धन का ।।स्थापना।।मेंटने आये,
पाप-लकीर, नीर भेंटने लाये ।।जलं।।मेंटने आये,
पाप-मन, चन्दन भेंटने लाये ।।चन्दनं।।मेंटने आये,
पाप-लत, अक्षत भेंटने लाये ।।अक्षतं।।मेंटने आये,
पाप-तम, कुसुम भेंटने लाये ।।पुष्पं।।मेंटने आये,
पाप-पन, व्यञ्जन भेंटने लाये ।।नैवेद्यं।।मेंटने आये,
पाप धी-धिक्, दीपक भेंटने लाये ।।दीपं।।मेंटने आये,
पाप-पंक, सुगन्ध भेंटने लाये ।।धूपं।।मेंटने आये,
पाप-पल, श्रीफल भेंटने लाये ।।फलं।।मेंटने आये,
पाप-मग, अरघ भेंटने लाये ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
गुरु का दिल,
‘होता वैसा ही’
जैसा कि माँ का दिल।। जयमाला।।
बिना झपाये पलक
मैं तेरी पाता रहूँ झलक
यूँ ही हमेशा
कर भी दो कुछ ऐसा
ओ ! गुरु सा
मेरे गुरु सा
कर भी दो कुछ ऐसालगा के नयन आँसुओं की धार
तेरे चरण-कमल, ‘कि पाऊँ मैं पखार
जिनके आगे फीका है रुपया-पैसा
ओ ! गुरु सा
मेरे गुरु सा
कर भी दो कुछ ऐसाहाथों का बना अपने नारियल
तेरी सेवा में खड़ा रहूँ मैं पल-पल
न सही और कर दो इतना सा अहसाँ
ओ ! गुरु सा
मेरे गुरु सा
कर भी दो कुछ ऐसाबना ‘मनके’ दिल धड़कन मैं
लम्हें जीवन के गुजारूँ तेरे सुमरण में
मैं मछली, है तू पानी जैसा
ओ ! गुरु सा
मेरे गुरु सा
कर भी दो कुछ ऐसा
बिना झपाये पलक
मैं तेरी पाता रहूँ झलक
यूँ ही हमेशा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
दो भूला-भूल,
अपने चरणों की लो बना धूल
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