परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 415*हाईकू*
जेते सन्त हैं,
वे चलते-फिरते भगवन्त हैं ।।स्थापना।।नाचूँ गुलाल उड़ा,
लो स्वीकार ये जल का घड़ा ।।जलं।।नाचूँ पैर पे एक,
चन्दन ये, लो जर्रा तो देख ।।चन्दनं।।नाचूँ मजीरे ढोल साथ,
ले हाथों में धाँ परात ।।अक्षतं।।नाचूँ ताल से ताल मिला,
ले हाथों में फूल खिला ।।पुष्पं।।नाचूँ बाँध के घूँघरू,
‘के स्वीकार लो घृत चरु ।।नैवेद्यं।।नाचूँ मैं दे दे ताली,
‘के स्वीकार लो घृत दीपाली ।।दीपं।।नाचूँ मैं हो के भाव विभोर,
लिये धूप बेजोड़ ।।धूपं।।नाचूँ मैं बना फिरकी,
ले श्री फल टोकरी निरी ।।फलं।।नाचूँ मैं झूम झूम गोल-गोल,
ले अर्घ अमोल ।।अर्घ्यं।।*हाईकू*
दीखते भींगे गुरु नैन,
बच्चों को देख बेचैन।।जयमाला।।
थे तुम तो इक प्यार के दरिया
आँसूओं का
ये तोहफा,
आँसूओं का
करके नजर
दो भी बता गुरुवरहुई क्या खता
गुरुवर दो भी बता
है किधर को चल दिया
नैन भर के तुम्हें,
न देख पाये हम अभीजा रहे हो बिन कहे,
जैसे हम तुम हों अजनबी
दिखा सपना क्यों रुला दिया
क्यों अपना के भुला दिया ।करना थी मन की बात,
कुछ कुछ खुल रहे थे तभी
जा रहे हो बिन कहे,
जैसे हम तुम हों अजनबी
दिखा सपना क्यों रुला दिया
क्यों अपना के भुला दिया ।दिन हो या रात
जाने क्यूँ आते रहते हो याद
करना थी मन की बात
कुछ कुछ खुल रहे थे तभी।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
राखना आगे भी पत,
‘म्हारी’
और न हसरत
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