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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 413

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 413

    “हाईकू”
    दें लगा पार, लिये बिन रूपैय्या,
    गुरु खिवैय्या ।।स्थापना।।

    बर्सा इतनी सी कृपा दो,
    दृग् जल ये अपना लो ।।जलं।।

    बर्सा इतनी सी दया दो
    चन्दन ये अपना लो ।।चन्दनं।।

    बर्सा इतनी सी अनुकम्पा दो,
    धाँ ये अपना लो ।।अक्षतं।।

    बर्सा इतनी सी करुणा दो,
    पुष्प ये अपना लो ।।पुष्पं।।

    पूर इतनी सी मंशा दो,
    नैवेद्य ये अपना लो ।।नैवेद्यं।।

    कर इतना सा मेहरा दो,
    दीवा ये अपना लो ।।दीपं।।

    बर्सा इतनी सी किरपा दो,
    धूप ये अपना लो ।।धूपं।।

    पूर इतना सा अरमां दो,
    फल ये अपना लो ।।फलं।।

    कर इतना सा एहसाँ दो,
    अर्घ ये अपना लो ।।अर्घ्यं।।

    “हाईकू”
    इक नजर डाल,
    गुरु मुश्किलों से लें निकाल

    ।। जयमाला ।।

    मैं न चल पाऊँगा अकेले
    तू मुझे भी अपने साथ ले ले
    तेरा नहीं कुछ भी जायेगा
    मुझे मिल सब कुछ ही जायेगा

    पार लग बेड़ा जायेगा
    हार भग अंधेरा जायेगा
    तू मुझे भी ले चल धकेले
    तू मुझे भी अपने साथ ले ले ।

    भाग जग मेरा जायेगा
    हाथ लग सबेरा जायेगा
    तू मेरा हाथों में हाथ ले ले
    तू मुझे भी अपने साथ ले ले ।

    विघट जग फेरा जायेगा
    संकट चिग घनेरा जायेगा
    जाने कब काल आ जिन्दगी से खेले
    तू मुझे भी अपने साथ ले ले ।
    मैं न चल पाऊँगा अकेले

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    “हाईकू”
    पाना मुकाम,
    बात होती आम,
    ले गुरु का नाम

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