- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 404
हाईकू
जीवन नया पा गया,
पा तुम्हें, क्या न मैं, पा गया ।।स्थापना।।
जल ये भेंट रहा,
जा रहे, चालो ले हमें वहाँ ।।जलं।।
चन्दन भेंट रहा,
आगे तुम है चन्दन कहाँ ।।चन्दनं।।
अक्षत भेंट रहा,
ले आश सम्पत्-अर्हत महा ।।अक्षतं।।
सुमन भेंट रहा,
भाँत तुम न सुमन यहाँ ।।पुष्पं।।
नैवेद्य भेंट रहा,
शीघ्र ले विदा, रोग क्षुध् हहा ।।नैवेद्यं।।
दीप ये भेंट रहा,
हा ! भागे मृग ‘जी’ जहाँ-तहाँ ।।दीपं।।
धूप ये भेंट रहा,
हहा ! ‘जी’ गज सा रहा नहा ।।धूपं।।
फल ये भेंट रहा,
ले चालो हमें, जा रहे जहाँ ।।फलं।।
अर्घ ये भेंट रहा,
ले आश, पद अनर्घ अहा ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
अकेले वो श्री गुरु,
जो चाहें, फैले और खुशबू
जयमाला
दीवानी थी जिस कदर मीरा
दीवानगी उस कदर मेरा
चाहता है मन भी पल-पल
‘जि गुरु जी आज-कल
तेरी तारीफों के बाँधता पुल रहता ।
तेरी तस्वीरों के साथ घुल मिल रहता ।।
घने-घने, दृग् अपने करके सजल
‘जि गुरु जी आज-कल
दीवानी थी जिस कदर मीरा
दीवानगी उस कदर मेरा
चाहता है मन भी पल-पल
‘जि गुरु जी आज-कल
दौड़ पड़ता है ले होठों पे मुस्कुराहट
कहीं से भी आई हो, किसी की भी आहट
और देखा जो, तो लगे हाथ रेखा-जल
‘जि गुरु जी आज-कल
दीवानी थी जिस कदर मीरा
दीवानगी उस कदर मेरा
चाहता है मन भी पल-पल
‘जि गुरु जी आज-कल
जा खोजा करता है, तुझे दूर तलक
कहीं तो मिल जाये तेरी इक नूरे-झलक
पल अगले, हो जाये, भले ओझल
‘जि गुरुजी आज-कल
दीवानी थी जिस कदर मीरा
दीवानगी उस कदर मेरा
चाहता है मन भी पल-पल
‘जि गुरु जी आज-कल
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
नैन भर के, तुम्हें रहूँ देखता,
यूँ ही देवता
Sharing is caring!