परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 400=हाईकू=
उन्हें दे ‘दिया’ सुखी कर,
दुःखी मैं भी गुरुवर ।।स्थापना।।कहे अल्बिदा तू-तू मैं-मैं,
‘कि जल भिटाऊँ तुम्हें ।।जलं।।अपना बना लो हमें,
‘कि चन्दन भिटाऊँ तुम्हें ।।चन्दनं।।सुनो, अपना लो हमें,
‘कि अक्षत भिटाऊँ तुम्हें ।।अक्षतं।।मन तरंग मार लूँ मैं,
‘कि पुष्प भिटाऊँ तुम्हें ।।पुष्पं।।वेदना रोग-क्षुध् गुमे,
‘कि नैवेद्य भिंटाऊँ तुम्हें ।।नैवेद्यं।।निकले मुख बात जमे,
‘कि दीप भिटाऊँ तुम्हें ।।दीपं।।दौड़ मृग सी थमे,
‘कि नूप-धूप भिटाऊँ तुम्हें ।।धूपं।।छोड़ अकेले न देना हमें,
कि फल भिटाऊँ तुम्हें ।।फलं।।बने जीवन मंगल-‘मै’
‘कि अर्घ्य भिटाऊँ तुम्हें ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
फिर निकले,
चीख
भक्त
‘मुख’
श्री गुरु पहलेजयमाला
सुत श्री मत जय जय जय ।
पत भारत जय जय जय ।।
चल तीरथ जय जय जय ।
ध्रुव कीरत जय जय जय ।।१।।गोपाला जय जय जय ।
मन बाला जय जय जय ।।
बुध नेता जय जय जय ।
उध रेता जय जय जय ।।२।।गृह करुणा जय जय जय ।
इह शरणा जय जय जय ।।
शिव तरणी जय जय जय ।
दिव धरणी जय जय जय ।।३।।सु-मरण रत जय जय जय ।
दर्पण वत् जय जय जय ।।
दृग् नासा जय जय जय ।
विश्वासा जय जय जय ।।४।।शारद कुल जय जय जय ।
स्वारथ गुल जय जय जय ।।
गुण अनन्त जय जय जय ।
जय जयन्त जय जय जय ।।५।।।। जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
मैं हारा,थका हूँ,
तेरी गोद मिले, तो सर टेकूँ
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