परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 392==हाईकू==
पग तुम्हारा बस छू जाये,
माटी से खुश्बू आये ।।स्थापना।।भेंटूँ पानीय,
‘कि होवे चारों खाने चित् मोहनीय ।।जलं।।भेंटूँ संदल,
‘कि कर्म मोहनीय भागे निकल ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत,
छोड़ होड़ ‘कि पाऊँ सुख शाश्वत ।।अक्षतं।।भेंटूँ पहुप,
‘कि हाथ काले करूँ न लुप-छुप ।।पुष्पं।।भेंटूँ षट्-रस,
क्षुध् विहँस, पाऊँ ‘कि सम्यक् दरश ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ संज्योति,
जाते जाते ‘कि लगे-हाथ दृग्-मोति ।।दीपं।।भेंटूँ अगर,
नाक भार बिना ‘कि पाऊँ नजर ।।धूपं।।भेंटूँ भेला,
मैं रहूँ, न रहे मेरे अन्दर मेला ।।फलं।।भेंटूँ दरब सब,
‘कि मथूँ और न पानी अब ।।अर्घं।।==हाईकू ==
लोग उठाते अंगुली
‘पर’
गुरु जी को थमानेजयमाला
रंग मेरी चुनर दो
मेरे गुरुवर ओ
अपने रंग में
अपने संग में
अभागा बच्चा ई रख लो।
ये धागा कच्चा भी रख लो ॥आती सांझ तलक को
बस जाती साँस तलक को ॥
मेरे गुरुवर ओ ।
रंग मेरी चुनर दो ।
अपने रंग में
अपने संग में
अभागा बच्चा ई रख लो।
ये धागा कच्चा भी रख लो ॥ये अनगढ़ पत्थर भी रख लो
ये बेखुश्बू गुल भी रख लो
आती सांझ तलक को
बस जाती साँस तलक को ॥
मेरे गुरुवर ओ ।
रंग मेरी चुनर दो ।
अपने रंग में
अपने संग में
अभागा बच्चा ई रख लो।
ये धागा कच्चा भी रख लो ॥सीप बिन मोती ई रख लो।
दीप लौं जाती ई रख लो ।
आती सांझ तलक को
बस जाती साँस तलक को ॥
मेरे गुरुवर ओ ।
रंग मेरी चुनर दो ।
अपने रंग में
अपने संग में
अभागा बच्चा ई रख लो।
ये धागा कच्चा भी रख लो ॥
।। जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू ==
कभी गांव भी मेरा,
जाये पा समोशरण तेरा
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