परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 390*हाईकू*
न कुछ और सिन्धु,
सिवाय माँओं के अश्रु बिन्दु ।।स्थापना।।भेंटूँ दृग् जल,
समकित मेरा ‘कि बने निर्मल ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन,
न खेले लुका-छुपी ‘कि सम्यक्-दर्शन ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत,
पाऊँ सम्यक् -दर्शन ‘कि अनछत ।।अक्षतं।।भेंटूँ कुसुम,
मिथ्या दर्शन कर सकूँ ‘कि गुम ।।पुष्पं।।भेंटूँ नेवज,
हटा सकूँ ‘कि मन से मिथ्या रज ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीवाली,
हो ‘के रह जाये न सम्यक्त्व खाली ।।दीपं।।भेंटूँ सुगंध,
भी’तर से ‘कि जुड़ सके संबंध ।।धूपं।।भेंटूँ भेला,
न विसारूँ कभी, मेले आया अकेला ।।फलं।।भेंटूँ अरघ,
पाऊँ दर्शादर्श ‘कि कुछ अलग ।।अर्घ्यं।।*हाईकू*
हेर-फेर में न लेते रस,
हैं वे गुरु जी बस।। जयमाला।।
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा हैघूमा जहाँ
है कोई कहाँ
तुझ सा गुरु जी
हाँ… हाँ, चन्दा भी
तुझपे फिदा है ।
तू मेरा खुदा है
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा हैगुल-गुलाब-गुलाबी
कोहिनूर हीरा भी
तुझसे फीका है
बस तू तुझसा दीखा है ।
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा हैघूमा जहाँ
है कोई कहाँ
तुझ सा गुरु जी
हाँ… हाँ, चन्दा भी
तुझपे फिदा है ।
तू मेरा खुदा है
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा हैमोर पंख लाजबाबी
चित् चोर मयूरा भी
न तुझसा नीका है
बस तू ही तुझ सा दिखा है
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा हैघूमा जहाँ
है कोई कहाँ
तुझ सा गुरु जी
हाँ… हाँ, चन्दा भी
तुझपे फिदा है ।
तू मेरा खुदा है
सबसे जुदा है
तू मेरा खुदा है
।। जयमाला पूर्णार्घं।।*हाईकू*
डरूँ मैं,
गुरु जी ! अपने साथ में रख लो हमें
Sharing is caring!