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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 388

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 388

=हाईकू=
कर कोयल कुहू-कुहू,
है कहे तुझ जैसा तू ।।स्थापना।।

नीर ये क्षीर रत्नाकर,
लाया लो स्वीकार कर ।।जलं।।

घिस सादर,
चन्दन लाया ये, लो स्वीकार कर ।।चन्दनं।।

धाँ दाना-दाना अखर,
लाया ये, लो स्वीकार कर ।।अक्षतं।।

खुश्बू इतर,
सुमन, लाया ये, लो स्वीकार कर ।।पुष्पं।।

मृदु-मधुर,
व्यञ्जन, लाया ये, लो स्वीकार कर ।।नैवेद्यं।।

नयन-हर,
दीपक, लाया ये, लो स्वीकार कर ।।दीपं।।

मन-विहर,
सुगंध, लाया ये, लो स्वीकार कर ।।धूपं।।

दो पार कर,
श्रीफल, लाया ये, लो स्वीकार कर ।।फलं।।

मिश्रण कर,
अरघ लाया ये, लो स्वीकार कर ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू =
संजीवन,
श्री गुरु वचनामृत
सजीव धन

।। जयमाला।।
वर्तमाँ-वर्धमाँ
अय ! रहनुमा

क्या पता है
तुम्हें बहुत चाहता है
मेरा मनुआ
वन के बाबरा
फूलों के जैसा भँवरा
बहुत चाहता है
किससे छुपा है
अय ! गुम गुमाँ
वर्तमाँ-वर्धमाँ
अय ! रहनुमा

क्या पता है
तुम्हें बहुत चाहता है
मेरा मनुआ
वन के बाबरा
चंदा को जैसे चकोरा
बहुत चाहता है
किससे छुपा है
अय ! गुम गुमाँ
वर्तमाँ-वर्धमाँ
अय ! रहनुमा

क्या पता है
तुम्हें बहुत चाहता है
मेरा मनुआ
वन के बाबरा
बदरा को जैसे मयूरा
बहुत चाहता है
सबको पता है,

आउ-सा नमः
वर्तमाँ-वर्धमाँ
अय ! रहनुमा
क्या पता है
तुम्हें बहुत चाहता है
मेरा मनुआ
वन के बाबरा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू =
लागे मुझे है डर,
अँगुली थाम लो गुरुवर

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